4 जुलाई 2025: आज सुबह जबलपुर का आसमान आंसुओं से तर हो गया। लगातार हो रही बारिश मानो संस्कारधानी की शान, पद्मश्री डॉ. मुनीश्वर चंद्र डावर (Padma Shri Dr. Munishwar Chandra Dawar) के निधन पर प्रकृति की सिसकियां हो। सुबह 9:30 बजे, 84 वर्ष की आयु में, यह महान चिकित्सक और मानवता के मसीहा दुनिया को अलविदा कह गए। उनके निधन की खबर ने न केवल जबलपुर, बल्कि पूरे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) को शोक में डुबो दिया।
गरीबों के लिए वरदान थे डॉ. डावर
डॉ. मुनीश्वर चंद्र डावर, जिन्हें जबलपुर के लोग "धरती का भगवान" कहकर पुकारते थे, ने अपनी पूरी जिंदगी गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में समर्पित कर दी। 1972 में जब उन्होंने जबलपुर में अपनी क्लिनिक शुरू की, तब उनकी फीस मात्र 2 रुपये थी। महंगाई के इस दौर में भी उन्होंने अपनी फीस को 20 रुपये तक सीमित रखा, जो गरीबों के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। उनके क्लिनिक के बाहर हर दिन सैकड़ों मरीजों की कतार लगती थी, और वे प्रत्येक मरीज को पूरे धैर्य और करुणा के साथ देखते थे। कई बार तो वे मरीजों को मुफ्त इलाज के साथ-साथ आर्थिक मदद भी प्रदान करते थे।
Padma Shri Dr. Munishwar - सेना से चिकित्सा तक का प्रेरणादायी सफर
16 जनवरी 1946 को तत्कालीन पंजाब (अब पाकिस्तान) में जन्मे डॉ. डावर का जीवन संघर्षों और समर्पण की कहानी है। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद उनका परिवार जालंधर, पंजाब आ गया। उन्होंने 1967 में जबलपुर से MBBS की डिग्री हासिल की और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना में कैप्टन के रूप में घायल सैनिकों की सेवा की। युद्ध के बाद, उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर जबलपुर में आम लोगों की सेवा का संकल्प लिया।
डॉ. डावर ने बताया था, "533 उम्मीदवारों में से केवल 23 का चयन हुआ, और मैंने 9वीं रैंक हासिल की।" इस उपलब्धि ने उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया, जिसे उन्होंने अपनी चिकित्सा सेवा में उतारा।
पद्मश्री सम्मान ने बढ़ाया जबलपुर का गौरव
2023 में भारत सरकार ने डॉ. डावर को उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए Padma Shri से सम्मानित किया। इस सम्मान ने न केवल जबलपुर, बल्कि पूरे मध्य प्रदेश का मान बढ़ाया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गणतंत्र दिवस समारोह में उन्हें शाल और श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया था। मुख्यमंत्री ने कहा था, "डॉ. डावर का जीवन चिकित्सा के लिए समर्पित रहा है। यह सम्मान पूरे मध्य प्रदेश के लिए गौरव की बात है।"
मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, "पद्मश्री डॉ. एमसी डावर जी के निधन का समाचार अत्यंत दुखद है। यह जबलपुर ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण प्रदेश के लिए अपूरणीय क्षति है।
डावर की दवा: संस्कारधानी की शान, जिन्होंने छुआ दिल
डॉ. डावर के क्लिनिक का नाम "डावर की दवा" जबलपुर में हर गरीब के लिए उम्मीद की किरण था। उनकी सादगी और समर्पण ने उन्हें जन-जन का प्रिय बना दिया। चाहे वह कोरोना काल हो या सामान्य दिन, वे हमेशा मरीजों की सेवा में तत्पर रहे। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, "मैं कोरोना काल में और मदद करना चाहता था, लेकिन मुझे दो बार कोरोना हुआ, जिसका मुझे अफसोस है।"
उनके बेटे, डॉ. ऋषि डावर, भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए चिकित्सा क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। लेकिन डॉ. डावर की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता। उनकी पत्नी शशि डावर का पहले ही निधन हो चुका है, और अब उनके परिवार में बेटे, बहू सुचिता डावर और नातिन हैं।
अंतिम विदाई में उमड़ा जनसैलाब
डॉ. डावर के निधन की खबर फैलते ही उनके निवास पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। कई लोग आंसुओं के साथ उनकी अंतिम विदाई में शामिल हुए। स्थानीय लोग उन्हें "संस्कारधानी का रत्न" कहकर याद कर रहे हैं।
एक युग का अंत, लेकिन प्रेरणा हमेशा जीवितडॉ. मुनीश्वर चंद्र डावर का जाना केवल जबलपुर या मध्य प्रदेश के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी निस्वार्थ सेवा, करुणा और समर्पण की मिसाल हमेशा चिकित्सा जगत और समाज को प्रेरित करती रहेगी। Jabalpur News में उनकी कहानी एक ऐसी स्मृति है, जो हर दिल में बसी रहेगी।
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