मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने 3 साल की मासूम बच्ची की मौत के मामले में माता-पिता, केंद्र और राज्य सरकारों, और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी किया है। यह मामला जैन धर्म की प्राचीन प्रथा संथारा (Santhara) से जुड़ा है, जिसमें दावा किया गया है कि बच्ची ने स्वेच्छा से प्राण त्याग दिए।
संथारा क्या है? (What is Santhara?)
जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, संथारा, जिसे सल्लेखना (Sallekhana) या समाधिमरण (Samadhimaran) भी कहा जाता है, एक पवित्र धार्मिक प्रथा है। इसमें व्यक्ति जीवन के अंतिम चरण में भोजन और जल का त्याग करता है ताकि आत्म-शुद्धि (Self-purification) और मोक्ष (Moksha) प्राप्त कर सके। यह आत्महत्या (Suicide) नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रक्रिया (Spiritual process) है, जिसका उद्देश्य मन को शांति और संसार के मोह-माया से मुक्ति दिलाना है। संथारा आमतौर पर बुढ़ापे या लाइलाज बीमारी (Incurable disease) के समय लिया जाता है। यह निर्णय स्वैच्छिक (Voluntary) होता है और इसके लिए परिवार व जैन गुरु (Jain Guru) की सहमति आवश्यक है। इस दौरान व्यक्ति ध्यान (Meditation), प्रार्थना (Prayer), और धार्मिक ग्रंथों (Religious texts) के अध्ययन में समय बिताता है।
हाईकोर्ट में याचिका (Petition in High Court)
सामाजिक कार्यकर्ता प्रांशु जैन (23) ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि बच्चों और मानसिक रूप से बीमार लोगों को संथारा लेने की अनुमति न दी जाए। याचिकाकर्ता के वकील शुभम शर्मा ने दलील दी कि संथारा से पहले व्यक्ति की सहमति (Consent) जरूरी है। उन्होंने आरोप लगाया कि ब्रेन ट्यूमर (Brain Tumor) से पीड़ित 3 साल की बच्ची को कथित तौर पर संथारा लेने के लिए मजबूर किया गया, जिससे उसकी मौत हो गई। यह बच्ची के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार (Constitutional Right) का उल्लंघन है।
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज (Golden Book of World Records)
वकील शर्मा ने बताया कि बच्ची की मौत के बाद उसके माता-पिता ने गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Golden Book of World Records) में आवेदन किया। इस संस्था ने प्रमाण पत्र (Certificate) जारी कर बच्ची को संथारा लेने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की शख्स (Youngest person) घोषित किया। याचिकाकर्ता ने केंद्र और राज्य सरकारों (Central and State Governments) से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई (Action) नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट (High Court) का रुख किया।
माता-पिता का पक्ष (Parents' Statement)
बच्ची के माता-पिता, जो आईटी प्रोफेशनल (IT Professionals) हैं, ने कहा कि उन्हें एक जैन साधु (Jain Monk) से प्रेरणा मिली थी। उनकी बेटी ब्रेन ट्यूमर के कारण गंभीर रूप से बीमार थी और खाने-पीने में असमर्थ थी। मार्च 2025 में उन्होंने बच्ची को संथारा दिलवाया, जिसके बाद उसकी मौत हो गई। माता-पिता का दावा है कि संथारा की रस्में पूरी होने के तुरंत बाद बच्ची ने प्राण त्याग दिए।
यह मामला जैन धर्म की प्रथा संथारा और बच्चों के अधिकारों (Child Rights) के बीच टकराव का विषय बन गया है। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों से जवाब मांगा है, और इस मामले में आगे की सुनवाई का इंतजार है।