MP HIGH COURT का ऐतिहासिक आदेश - रिश्वत मांगने वाले पटवारी के खिलाफ, लोकायुक्त कार्रवाई करें

जबलपुर स्थित हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश ने आज एक याचिका का निराकरण करते हुए ऐतिहासिक आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने लोकायुक्त का आदेश किया है कि वह रिश्वत मांगने वाले पटवारी के खिलाफ कार्रवाई करें। हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति द्वारा कलेक्टर को जो आवेदन दिया गया है, इस आवेदन को FIR मानकर आगे की कार्रवाई शुरू करें। 

रिश्वत मांगने वाले पटवारी का कॉन्फिडेंस देखो

मध्य प्रदेश - सागर जिले की नगर पंचायत शाहपुर के पटवारी हल्का क्रमांक 107 के कृषक अनिरुद्ध श्रीवास्तव ने अपने चाचा राजेश श्रीवास्तव से 29 मार्च 2025 को जमीन खरीदी थी। नामांतरण (land mutation) के लिए उन्होंने 8 मई 2025 को पटवारी रामसागर तिवारी को लिखित आवेदन और सभी आवश्यक दस्तावेज सौंपे। अनिरुद्ध ने पटवारी से नामांतरण का अनुरोध किया, लेकिन पटवारी ने 20,000 रुपये की रिश्वत मांगी और स्पष्ट कहा कि रिश्वत नहीं देने पर नामांतरण नहीं होगा, चाहे वह प्रधानमंत्री के पास ही क्यों न जाएँ। 

हाई कोर्ट ने हवा निकाल दी

कृषक ने पटवारी के इस आपराधिक कृत्य (criminal act) की लिखित शिकायत कलेक्टर सागर और कमिश्नर सागर को की, लेकिन कोई उचित कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद, अनिरुद्ध ने हाईकोर्ट (High Court) में RPS Law Associate के माध्यम से याचिका क्रमांक 20331/2025 दायर की। याचिका की प्रारंभिक सुनवाई जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने की। उच्च न्यायालय (High Court) ने लोकायुक्त (Lokayukta) को आदेश दिया कि कृषक की कलेक्टर सागर को दी गई शिकायत को FIR मानकर आरोपी पटवारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। याचिकाकर्ता की ओर से RPS Law Associate के अधिवक्ता हितेंद्र कुमार गोह्लानी ने पैरवी की। 

नामांतरण के लिए रिश्वतखोरी, मध्य प्रदेश में कैंसर जैसी बीमारी

मध्य प्रदेश के सबसे विश्वसनीय न्यूज़ पोर्टल भोपाल समाचार डॉट कॉम द्वारा लगातार यह मुद्दा उठाया जा रहा है। संपत्ति का नामांतरण एक लीगल प्रक्रिया है। नामांतरण के लिए सरकार को मोटी फीस और टैक्स दिया जाता है। इसके बावजूद राजस्व विभाग, नगर निगम और नगर पालिकाएं, भोपाल विकास प्राधिकरण और हाउसिंग बोर्ड, इत्यादि सभी विभागों द्वारा डंके की चोट पर रिश्वत ली जा रही है। रिश्वत नहीं देने पर नामांतरण की फाइल को अनिश्चितकाल के लिए पेंडिंग कर दिया जाता है। "रिश्वत नहीं देने पर नामांतरण नहीं होगा, चाहे वह प्रधानमंत्री के पास ही क्यों न जाएँ" यह बयान पटवारी का घमंड नहीं बल्कि कॉन्फिडेंस है। 

जांच तो कलेक्टर की भी होनी चाहिए

हाई कोर्ट का यह आर्डर लैंडमार्क डिसीजन है। एक रास्ता मिल गया है। यदि कलेक्टर सुनवाई न करें तो कहां जाएं लेकिन इस मामले में यह भी प्रमाणित होता है कि कलेक्टर ने शिकायत पर कार्रवाई नहीं की। पटवारी कलेक्टर का अधीनस्थ कर्मचारी होता है। कलेक्टर ने अपने डिपार्टमेंट के कर्मचारियों के खिलाफ प्राप्त हुई शिकायत पर कार्रवाई नहीं की। इसके पीछे कलेक्टर का क्या उद्देश्य हो सकता है। क्या पटवारी की ओर से कलेक्टर को कोई नियमित लाभ प्राप्त होता है। जांच तो कलेक्टर की भी होनी चाहिए।

भोपाल समाचार नियमित प्राप्त करने के लिए

तरीका लिंक
गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करें यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें यहां क्लिक करें
X (ट्विटर) पर फॉलो करें यहां क्लिक करें

भोपाल समाचार की टीम में शामिल होने के लिए सीधे संपर्क करें

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!