यह समाचार उन सभी लोगों की नाक में घूंसा है जो गाय के गोबर को किसी दूसरे जानवर के अपशिष्ट के समान बताया करते थे। एक रिसर्च यूनाइटेड किंगडम (UK) में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) में हुई। इसमें प्रोफेसर मोहन एडिरिसिंघे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने गाय के गोबर में से नैनोसेलूलोज़ निकालने में सफलता हासिल की। अब गाय के गोबर से ऐसे ऐसे प्रोडक्ट बनेंगे, जिनकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy this article.
गाय की गोबर से कितने प्रोडक्ट बनाए जा सकेंगे
यह रिसर्च रिपोर्ट The Journal of Cleaner Production में प्रकाशित हुई है। बताया गया है कि इस रिसर्च के दौरान गाय के गोबर में से नैनोसेलूलोज़ को सफलतापूर्वक निकाल लिया गया है। यह एक बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसके कारण हजारों eco-friendly products बनाए जा सकेंगे जो मजबूत, फ्लैक्सिबल और बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) होंगे। गाय के गोबर में उपलब्ध नैनोसेलूलोज़ से निम्न प्रोडक्ट बनाए जा सकेंगे:-
- नैनोसेलूलोज़ की उच्च शक्ति और large surface area इसे टिकाऊ और हल्का बनाता है। जिसके कारण डिस्पोजेबल कंटेनर, शॉपिंग बैग यहां तक कि food packaging प्रोडक्ट भी बनाए जाएंगे।
- इको फ्रेंडली कागज बनाया जा सकेगा।
- इको फ्रेंडली कपड़े बनाए जाएंगे। यह कपड़े मजबूत और moisture resistance होंगे। वजन में हल्के और लंबे समय तक चलेंगे। यहां तक की गाय के गोबर से Technical Fabrics भी बनाए जाएंगे।
- Biomedical Products जैसे सर्जिकल मास्क (surgical masks), घाव ड्रेसिंग (wound dressings) इत्यादि बनाए जाएंगे। इसकी biocompatibility इसे बायोमेडिकल प्रोडक्ट्स में सबसे बेस्ट बना देगी।
- नैनोसेलूलोज़ पारदर्शी और लचीले होते हैं। इलेक्ट्रॉनिक में फोल्डेबल स्क्रीन और सेंसर बनाए जा सकते हैं।
- बैटरी और सुपरकैपेसिटर के लिए इलेक्ट्रोड या सेपरेटर बनाए जाएंगे।
- नैनोसेलूलोज़ बायोडिग्रेडेबल होते हैं इसलिए खाद्य पदार्थों में hickening agent या स्टेबलाइजर के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं।
- नैनोसेलूलोज़ की स्टील जैसी शक्ति (steel-like strength) इसे सामग्री सुदृढीकरण (reinforcement) के लिए आदर्श बनाती है। इसलिए इनका उपयोग ऑटोमोबाइल यहां तक की एयरोस्पेस में मजबूत और हल्के कंपोजिट बनाने में किया जाएगा।
नैनोसेलूलोज़ क्या होता है
नैनोसेलूलोज़ (Nanocellulose) एक अत्यंत छोटे आकार (नैनोमीटर स्तर, 1-100 नैनोमीटर) का सामग्री है, जो सेलूलोज़ (cellulose) से प्राप्त होता है। सेलूलोज़ पौधों, पेड़ों, या इस मामले में गोबर जैसे स्रोतों में पाया जाने वाला प्राकृतिक रेशा (natural fiber) है। नैनोसेलूलोज़ को रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं (chemical or mechanical processes) द्वारा सेलूलोज़ को नैनो-स्तर तक तोड़कर बनाया जाता है।
नैनोसेलूलोज़ की विशेषताएं:
मजबूती (High Strength): यह स्टील जितना मजबूत हो सकता है, लेकिन बहुत हल्का (lightweight) होता है।
लचीलापन (Flexibility): यह लचीला होता है, जिससे इसे विभिन्न आकारों और रूपों में ढाला जा सकता है।
जैव-अवक्रमणीयता (Biodegradability): यह पर्यावरण-अनुकूल (eco-friendly) है और प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाता है।
बड़ा सतह क्षेत्र (Large Surface Area): नैनो-आकार के कारण इसका सतह क्षेत्र बड़ा होता है, जो इसे रासायनिक और भौतिक गुणों में प्रभावी बनाता है।
जैव-अनुकूलता (Biocompatibility): यह मानव शरीर के लिए सुरक्षित है, जिससे चिकित्सा अनुप्रयोगों में उपयोगी है।
गाय के गोबर में मौजूद चमत्कार
इस शोध में, गाय के गोबर (cow manure) से सेलूलोज़ निकाला गया और नोजल-प्रेशराइज्ड स्पिनिंग (nozzle-pressurized spinning) तकनीक से नैनोसेलूलोज़ रेशे (fibers) बनाए गए, जिनका व्यास केवल 13 नैनोमीटर था। 13 नैनोमीटर का मतलब है कि रेशे का व्यास मानव बाल (जो लगभग 50,000-100,000 नैनोमीटर मोटा होता है) से हजारों गुना छोटा है।
अब समझ में आया द्वापर में श्री कृष्ण गाय की रक्षा क्यों करते थे
भारतवर्ष में द्वापर युग में श्री कृष्ण का प्रसंग हुआ। वह गाय चराते थे, गाय का संरक्षण करते थे और उन्होंने ही गाय को पूज्य पशु के रूप में स्थापित करके गाय की हत्या को गंभीर पाप बताया था। भारत में कुछ विद्वान इस पूरे प्रसंग का मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि, श्री कृष्णा गाय चराने के बहाने गोपियों से मिलने जाते थे। इस रिसर्च के बाद शायद उनको समझ में आएगा कि द्वापर युग में श्री कृष्ण ने क्यों गाय की हत्या को पाप और गाय के संरक्षण को पुण्य बताया।
सिर्फ एक दुख की बात है
यह रिसर्च उत्साह भर देता है। श्री कृष्ण के गौ संरक्षण सिद्धांत को प्रमाणित करता है। इसके कारण गर्व की अनुभूति होती है परंतु एक दुख भी होता है। यह रिसर्च यूनाइटेड किंगडम (UK) में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) में हुई। जबकि 5250 वर्ष पहले गोवर्धन के कन्हैया ने भारत के वैज्ञानिकों को संकेत दे दिया था। कितना गौरव होता है यदि यह रिसर्च भारत की किसी यूनिवर्सिटी में होती। ✒ उपदेश अवस्थी।
रिसर्च में क्या-क्या किया
शुरुआत में, शोध टीम ने गोबर में प्राकृतिक रूप से मौजूद छोटे सेलूलोज़ के टुकड़ों (cellulose fragments) को निकालने का लक्ष्य रखा। हल्की रासायनिक प्रतिक्रियाओं (mild chemical reactions) और मिश्रण प्रक्रियाओं (blending processes) के माध्यम से, उन्होंने सेलूलोज़ से भरपूर तरल (cellulose-rich liquid) बनाया। अगला कदम इस तरल को उपयोगी fibers और films में बदलना था, जिसके लिए नोजल-प्रेशराइज्ड स्पिनिंग (nozzle-pressurized spinning, NPS) नामक तकनीक का उपयोग किया गया।
यह विधि दबाव (pressure) और घूर्णन बलों (rotation forces) को एक साथ उपयोग करके काम करती है। यह तरल सेलूलोज़ घोल (liquid cellulose solutions) से रेशे, फिल्में, रिबन (ribbons), और जाल (meshes) बनाती है। पारंपरिक रेशा-निर्माण प्रक्रियाओं (conventional fiber-making processes) के विपरीत, NPS अत्यधिक ऊर्जा-कुशल (energy-efficient) है, खतरनाक उच्च-वोल्टेज बिजली (hazardous high-voltage electricity) का उपयोग नहीं करती, और सेलूलोज़ जैसे गाढ़े, चिपचिपे घोल (viscous solutions) को आसानी से संभाल सकती है।
प्रोफेसर एडिरिसिंघे ने कहा, "गोबर से टुकड़ों को निकालना अपेक्षाकृत सरल था।" हालांकि, मानक NPS सेटअप का उपयोग करके सेलूलोज़ को घुमाने (spinning) के शुरुआती प्रयास असफल रहे। प्रगति तब हुई जब शोधकर्ताओं ने ऊर्ध्वाधर (vertical) से क्षैतिज (horizontal) स्पिनिंग सिस्टम में स्विच किया, और सेलूलोज़ को पानी में इंजेक्ट किया। यह सूक्ष्म समायोजन (subtle adjustment) मजबूत, उपयोगी रेशों को बनाने की कुंजी था।
एडिरिसिंघे ने स्वीकार किया, "हमें अभी भी पूरी तरह से समझ नहीं आया कि यह प्रक्रिया क्यों काम करती है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि यह काम करती है। इसे मौजूदा प्रेशराइज्ड स्पिनिंग तकनीक (pressurized spinning technology) का उपयोग करके आसानी से बढ़ाया भी जा सकता है।"
उत्पादित सेलूलोज़ रेशे अत्यंत महीन थे - केवल लगभग 13 नैनोमीटर व्यास (nanometers in diameter) के - जो मानव बाल से भी छोटे हैं। ऐसा नैनोसेलूलोज़ (nanocellulose) प्रभावशाली गुणों जैसे उच्च शक्ति (high strength), लचीलापन (flexibility), जैव-अवक्रमणीयता (biodegradability), और विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है। इसकी शक्ति और कठोरता (stiffness) स्टील के बराबर है, जो इसे कंपोजिट (composites), फिल्मों, और पर्यावरण-अनुकूल (eco-friendly) सामग्री को मजबूत करने के लिए आदर्श बनाती है।
यूसीएल (UCL) की टीम अब डेयरी किसानों के साथ साझेदारी (partnerships) की तलाश कर रही है ताकि इस आशाजनक तकनीक को विस्तार और परिष्कृत किया जा सके। यह प्रगति एक हरित और स्वच्छ विनिर्माण भविष्य (greener and cleaner manufacturing future) की ओर एक व्यावहारिक, स्केलेबल कदम का संकेत देती है।
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