मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है। इसमें मांग की गई है कि मध्य प्रदेश शासन द्वारा वित्त पोषित मंदिरों में पुजारी के पद पर नियुक्ति के लिए ब्राह्मण जाति के लोगों को 100% आरक्षण दिया जाना असंवैधानिक है।
सरकारी मंदिरों में पुजारी पद पर भर्ती होनी चाहिए?
हाई कोर्ट से निवेदन किया गया है कि वह मध्य प्रदेश सरकार की ऐसी पॉलिसी को निरस्त करें और सरकारी कर्मचारियों की भर्ती के समान मंदिरों में पुजारी के पद पर भर्ती के लिए निर्धारित आरक्षण का पालन करें। हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश द्वारा जनहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करने के बाद मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा गया है। हम इस समाचार में उन मंदिरों की लिस्ट प्रकाशित कर रहे हैं जो मध्य प्रदेश शासन द्वारा वित्तपोषित हैं। यदि हाई कोर्ट याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला देता है तो इन मंदिरों में पूर्व से नियुक्त ब्राह्मण पुजारी को हटाया जा सकता है और पुजारी भर्ती परीक्षा का आयोजन किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता के वकील की दलील
याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं पुष्पेंद्र शाह द्वारा कोर्ट को बताया गया कि मध्य प्रदेश शासन द्वारा विनिर्दिष्ट मंदिर विधेयक 2019 की धारा 46 के तहत अनुसूची-एक में मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों तथा अधीनस्थ मंदिरों, भवन तथा अन्य संरचनाओं सहित लगभग 350 से अधिक मंदिरों को अधिसूचित किया गया है, तथा अधिसूचित मंदिरों को मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य नियंत्रित के अधीन रखा है, जिनमें पुजारियों की नियुक्तियों से संबंधित राज्य सरकार के अध्यात्म विभाग ने दिनांक 04.02.2019 को नीति/कानून बनाया है, जिसके तहत केवल एक विशेष जाति (ब्राह्मण) को ही पुजारी के पद पर नियुक्ति दिए जाने की व्यवस्था की गई है तथा नियुक्त पुजारी को राजकोष से निर्धारित वेतन का भुगतान किए जाने का भी प्रावधान किया गया है।
अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उक्त सभी प्रावधान, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 तथा 21 से असंगत हैं, जो शून्यकरणीय हैं। अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि हिन्दू समुदाय में OBC/SC/ST वर्ग भी शामिल हैं फिर हिन्दू संप्रदाय की केवल एक जाति को ही पुजारी नियुक्त किया जाना भारतीय संविधान से असंगत है।
राज्य शासन की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभिजीत अवस्थी द्वारा उक्त जनहित याचिका की प्रचलनशीलता पर प्रश्न उठाया गया कि, याचिकाकर्ता अजाक्स एक कर्मचारियों का संगठन है जिसे उक्त याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार नहीं है, तब वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि सदियों से मंदिरों में पूजा-पाठ करने का काम एक जाति (ब्राह्मण) ही करता आ रहा है, जिसमें राज्य सरकार का कोई दखल नहीं रहा है, चूंकि 2019 से राज्य सरकार ने धार्मिक मामलों में दखल देकर वेतन आधारित पुजारी नियुक्त किए जाने का कानून बनाया है, जिसकी जानकारी आम जनता (हिन्दू समुदाय) को नहीं है, क्योंकि उक्त समुदाय आज भी यही जानता है कि मंदिरों में पूजा करने तथा पंडित, पुजारी बनने का अधिकार सिर्फ ब्राह्मण वर्ग को ही प्राप्त है, जिसे बी.पी. मण्डल आयोग तथा रामजी महाजन आयोग ने हिन्दू धर्म शास्त्रों का अध्ययन करके सरकार के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्टों में विस्तृत व्याख्या की है।
उक्त रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी वर्ग में नोटिफाइड सभी जातियों को धर्म शास्त्रों में शूद्र वर्ण से वर्णित किया गया है, उक्त रिपोर्ट में ओबीसी वर्ग को शूद्र (छूने योग्य) वर्ण में तथा SC/ST को पंचम (न छूने योग्य शूद्र) में शामिल किया गया है। लेकिन भारत में 26 जनवरी 1950 के संविधान लागू होने के बाद से देश के सभी नागरिक समान हैं, अनुच्छेद 13, 14 तथा 17 के प्रावधानों से छुआछूत तथा वर्ण व्यवस्था का समापन हो चुका है, तथा जहां कहीं भी विधायिका असमानता पैदा करने वाला कानून बनाती है तो उसे किसी भी व्यक्ति/नागरिक/संगठन द्वारा अनुच्छेद 226 या 32 के तहत चुनौती दी जा सकती है तथा समाज में समानता तथा विकास की मुख्य धारा में लाने हेतु पिछड़े वर्ग को आरक्षण से संबंधित प्रावधान किए गए हैं एवं जहां कहीं भी नियोजन हेतु राजकोष से राशि खर्च की जाएगी वहां आरक्षण के अनुरूप नियुक्तियां देना पड़ेगा।
उक्त तर्कों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने याचिका विचारार्थ स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जीएडी, सामाजिक न्याय मंत्रालय, धार्मिक एवं धर्मस्व मंत्रालय एवं लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के अंदर जवाब तलब किया है। याचिकाकर्ता मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (AJJAKS) की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, पुष्पेंद्र शाह, रमेश प्रजापति, अखिलेश प्रजापति ने की।
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