माननीय मुख्यमंत्री जी, सादर प्रणाम! हम प्रदेश के लगभग 70,000 से अधिक अतिथि शिक्षक आपसे यह मर्मस्पर्शी निवेदन कर रहे हैं। 30 अप्रैल 2025 को हमारा कार्यकाल समाप्त हो गया है। इसके साथ ही हमारे हाथ से रोज़गार की वह छोटी-सी डोर भी छिन गई है जिससे हम जैसे पढ़े-लिखे, योग्य, मेहनती और समर्पित लोग किसी तरह अपने परिवार का पेट पाल रहे थे। मुख्यमंत्री जी, हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि जब तक नई भर्ती नहीं होती या हमें पुनः नियुक्त नहीं किया जाता, तब तक हम अपने बच्चों, माता-पिता और परिवार का पालन कैसे करें?
क्या हम भीषण गर्मी में सड़क पर ठेला लगाकर तरबूज बेचें?
क्या हम कुछ ऐसा व्यापार करें जिसमें लागत कम हो — क्योंकि हमारे पास तो लागत जुटाने के भी पैसे नहीं हैं। ना ही कोई बैंक अतिथि शिक्षक के नाम पर 1000 रुपये तक का लोन देता है हमारे वेतन का हाल आप जानते ही हैं — समय पर नहीं मिलता, मिलता है तो इतना कम कि उससे पूरे महीने का राशन भी नहीं आता।, हालांकि नई आयुक्त मैडम के आने के बाद वेतन भुगतान में गति आई है यह बात बिलकुल सत्य है और हम सभी अतिथि शिक्षकों की तरफ से आयुक्त मैडम शिल्पा गुप्ता जी का धन्यवाद करते हैं।
एक मर्मस्पर्शी कहानी:
मान्यवर, पूर्व वर्ष की यह घटना शायद आपकी जानकारी में हो जो हमारे ही बीच की एक अतिथि शिक्षिका बहिन कल्पना देवी की है, जो शिवपुरी जिले की एक प्राथमिक शाला में अतिथि शिक्षिका थीं। पति का देहांत पहले ही हो चुका था, दो छोटे बच्चे थे। किसी तरह तीन साल तक स्कूल में सेवा देते हुए अपनी गरीबी, बेबसी और आत्मसम्मान के बीच संतुलन बनाकर जीवन जीती रहीं। लेकिन कार्यकाल समाप्त होने के बाद उनके पास कोई विकल्प नहीं था — अंततः उन्होंने घर-घर जाकर कपड़े सिलने का काम शुरू किया। कुछ दिन बाद सिलाई मशीन भी टूट गई। कई कई दिनों तक वह खुद भी भूखी रहीं और उनके बच्चे भी। उनकी आंखों में यह सवाल हमेशा रहा होगा: “क्या पढ़ाई करना हमारी सबसे बड़ी गलती थी?”
माननीय मुख्यमंत्री जी, कल्पना देवी अकेली नहीं हैं। हम सबकी परिस्थितियां मिलती-जुलती हैं। अतिथि शिक्षक केवल शिक्षा विभाग की नहीं, बल्कि इस प्रदेश की रीढ़ हैं। हमसे स्कूल चलते हैं, हमसे बच्चों को भविष्य मिलता है।
हम आपसे करबद्ध निवेदन करते हैं —
अगली भर्ती प्रक्रिया आरंभ होने तक हमें यथाशीघ्र पुनः कार्य पर रखा जाए तथा कोई स्थायी और सम्मानजनक विकल्प दिया जाए जिससे हम आत्मनिर्भर बन सकें, क्योंकि आपके हमारे स्कूल शिक्षा मंत्री जी इस विषय पर हमेशा नकारात्मक सोच ही रखते हैं ऐसा उनके वक्तव्यओं से हमेशा पता चलता है, उनसे कोई खासी उम्मीद रखना तो अपने से बेईमानी ही होंगी इसलिए उम्मीद आपसे है।
आदरणीय वर्तमान में प्रदेश में कुछ शिक्षक भर्ती परीक्षाएं तो चल रही हैं जिनमे अतिथि शिक्षकों को 50% तक सीट आरक्षित हैं लेकिन यह परीक्षा 10000 से भी कम पदों के लिए हो रही है मतलब 5000 पद अतिथिओं के लिए जबकि प्रदेश में 70-80 हजार तक अतिथि शिक्षक कार्यरत हैं तो फिर उन सबकी दशा ऐसे में कैसे सुधरेगी ये समझ से परे है। इसके अलावा वर्तमान परीक्षाओ का पैटर्न ऐसा नहीं है कि जो अतिथि शिक्षक जिस विषय का अध्यापन करा रहा हो उसका विस्तृत ज्ञान के बारे में उससे पूछा जाये बल्कि उसके विषय के अलावा बहुत कुछ है जो उसके कम्पटीशन को कठिन बनाता है, ऐसा नहीं है कि कोई अतिथि शिक्षक किसी कम्पटीशन से घबराता हो लेकिन एक नये फ्रेशर जिसके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है जो आराम से 18-20 घंटे पढ़ाई कर सकता है और एक अतिथि शिक्षक जिसे 7-8 घंटे स्कूल में देना है उसके अलावा उस पर माँ-बाप, बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी है घर की जिम्मेदारिओं को निभाने के लिए अकेला हो तो ऐसे में दोनों के बीच कॉम्पीटिशन तो बेमानी है और अगर कॉम्पीटिशन हो तो सिर्फ उस विषय के लिए जो वह अध्यापन कराता है ताकि उसको कम समय में तैयारी पूरी कर पाएऔर फिर जब उसको पढ़ाना वही विषय है तो उस पर अतिरिक्त बोझ क्यों?
यदि ऐसा संभव नहीं है, तो कृपया हमें कोई ऐसा काम बता दीजिए जिसमें लागत भी न लगे और सम्मान भी बचा रहे, क्योंकि शिक्षा देने वाला सड़क पर बैठकर तरबूज बेचे, यह दृश्य न सिर्फ हम शिक्षकों के लिए, बल्कि समाज के लिए भी दुखद है।
आपसे आस है, विश्वास है। कृपया हमारा दर्द समझें।
निवेदक:
भारत के ह्रदय, मध्य प्रदेश का एक अतिथि शिक्षक
(सैकड़ों अन्य बेरोजगार साथियों की ओर से)
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