WILL LAW NEWS - रजिस्टर्ड वसीयत के मामले में सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

Bhopal Samachar
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने प्रॉपर्टी वसीयत मामले में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। सभी पक्षों को सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास हाइ्रकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया और एक नया जजमेंट सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वसीयत के जरिए संपत्ति पर दावा करने वाले व्यक्ति का दायित्व होता है कि वह वसीयत की सत्यता (authenticity) को सिद्ध करे। सिर्फ इसलिए कि वसीयत रजिस्टर्ड है, इसका मतलब यह नहीं है कि कानूनी तौर पर सत्यता सिद्ध करने की आवश्यकता खत्म हो जाती है।

रजिस्टर्ड वसीयत क्यों संदिग्ध हो गई

जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने वसीयत को अवैध ठहराते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने पाया कि वसीयतकर्ता (जिस व्यक्ति ने वसीयत बनाई) लकवे से पीड़ित था, जिससे उसके दाहिने हाथ और पैर काम नहीं कर रहे थे। इसके अलावा, वसीयत पर हस्ताक्षर कंपकंपाते हुए किए गए थे, जो उसकी सामान्य हस्तलिपि से मेल नहीं खाते थे। कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि वसीयत पर दस्तखत करने वाले गवाह वसीयतकर्ता के लिए अंजान थे और वसीयत को प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति इसके निर्माण में अत्यधिक सक्रिय था।

तीन बार फैसला बदला गया

हाईकोर्ट ने पहले ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था, जिसने वसीयत के आधार पर संपत्ति के वितरण का आवेदन (एलओए) खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को गलत मानते हुए कहा कि वसीयतकर्ता की मानसिक और शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए वसीयत की वैधता पर संदेह उठता है।

बहु बेटियों के बीच संपत्ति विवाद

यह मामला एक ऐसे व्यक्ति की वसीयत से संबंधित है, जिसने 1978 में अपनी मृत्यु से पहले वसीयत छोड़ी थी। उनकी पुत्रियों ने संपत्ति के बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया, जबकि पुत्रवधू ने वसीयत के आधार पर संपत्ति पर दावा किया। पुत्रियों ने वसीयत को फर्जी बताया, क्योंकि उनके अनुसार पिता की तबियत ऐसी नहीं थी कि वह वसीयत बना सकते थे। ट्रायल कोर्ट ने पुत्रियों के पक्ष में फैसला दिया, जिसे हाईकोर्ट ने पलटा था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने पुनः ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

इस महत्वपूर्ण फैसले से यह स्पष्ट होता है कि संपत्ति पर दावा करने वाले को वसीयत की सत्यता को कानूनी रूप से सिद्ध करना आवश्यक है, चाहे वसीयत पंजीकृत हो या नहीं।
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