पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को झूठी सूचना देना कब अपराध होता है जानिए - Legal Advice

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वर्तमान समय में झूठ बोलना व्यक्ति की एक आदत सी बन गया है व्यक्तिगत झूठ बोलते बोलते अब पुलिस अधिकारी से लेकर न्यायालय में मजिस्ट्रेट तक से झूठ बोल देते है, ऐसे झूठे व्यक्ति की बातों में विश्वास करके बहुत से अधिकारी निर्दोष व्यक्ति पर कार्यवाही कर देते है और निर्दोष व्यक्ति को क्षति का सामना करना पड़ता है, लेकिन जब कानून को पता चलता है की झूठी बातों पर विश्वास करके किसी लोक सेवक ने निर्दोष व्यक्ति को क्षति पहुचा दी तब कानून भी झूठी सूचना देने वाले व्यक्ति को नहीं छोड़ता है जानिए।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की परिभाषा 217 एवं भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 182 की परिभाषा

जो कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को झूठी सूचना देगा या कोई झूठी जानकारी देगा जिसे सच मानकर कोई लोक सेवक कार्यवाही कर दे ओर किसी निर्दोष व्यक्ति को क्षति हो जाए तब झूठी सूचना देने वाला वह व्यक्ति BNS की धारा 217 एवं IPC की धारा 182 के अंतर्गत दोषी होगा।

इस धारा को लागू होने के लिए दो तत्व आवश्यक है:-

1.  कोई सूचना झूठी हो और लोक सेवक ने उसे सच मानकर कार्यवाही कर दी हो।
2.  लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति द्वारा किसी निर्दोष व्यक्ति को कोई क्षति हो गई हो।

उदहारण अनुसार:- यदि कोई व्यक्ति पुलिस कमिश्नर को यह सूचना दे कि "क, नामक पुलिस अधिकारी ने रिश्वत ली है I  सूचना देने वाला व्यक्ति जानता है कि वह झूठ बोल रहा है पुलिस कमिश्नर ऐसे व्यक्ति की बातों का विश्वास करके "क, नामक पुलिस अधिकारी को सस्पेंड कर दे तब सूचना देने वाला व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।

बंबई एवं पटना हाइकोर्ट के अनुसार लोक सेवक को गुमराह करने के आशय से दी गई झूठी सूचना IPC की धारा 182 का अपराध होगा।

इसी संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय जानिए ..

• बुधसेन बनाम सम्राट मामले मे एक आरोपी ने जिला मजिस्ट्रेट को झूठी तार भेजी की गाव पर 200 लुटेरों ने हमला बोल दिया परंतु मजिस्ट्रेट ने इस तार (संदेश) पर विश्वास नहीं किया एवं कोई कार्यवाही भी नहीं की फिर भी झूठा तार (संदेश) भेजने वाले व्यक्ति को IPC की धारा 182 के अंतर्गत दोषी माना गया।

Bharatiya Nyaya Sanhita Section 217 or Indian Penal Code Section 182 Provision of punishment

"यह अपराध,असंज्ञेय एवं जमानतीय होते हैं अर्थात पुलिस थाने में इस अपराध के खिलाफ डारेक्ट एफआईआर दर्ज नहीं होगी , इस अपराध के लिए कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद (शिकायत)  दर्ज करवा सकते हैं एवं इस अपराध की सुनवाई कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है। इस अपराध के लिए छ: माह की कारावास या अब(नए कानून में एक हजार के स्थान पर) दस हज़ार रुपये जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। लेखक✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।

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