भगवान श्री राम जब युद्ध का संकल्प लेकर लंका की ओर बढ़ रहे थे तब कोडीकरई वह स्थान है जहां पर उन्हें सबसे पहले समुद्र दिखाई दिया। यहां से लंका की दूरी भी काफी कम थी और श्री राम के पास समय भी कम था। इसके बावजूद उन्होंने कोडीकरई श्रीलंका के लिए पल नहीं बनाया बल्कि रामसेतु के लिए समुद्र के एक ऐसे किनारे को चुना जहां पर संसाधनों की भारी कमी थी। जिसे हम रामेश्वरम के नाम से जानते हैं।
रामायण में कोडीकरई का क्या महत्व है
इस स्थान को Kodiyakarai, कोदियाकरै अथवा कोडीकरई अथवा कोडी करई के नाम से पुकारा जाता है। जब जंगल में श्री राम ने युद्ध का संकल्प लिया तो हनुमान जी भगवान श्री राम और लक्ष्मण को लेकर वायु मार्ग से समुद्र के तट पर पहुंचे। सुग्रीव आदि अन्य सभी अपने-अपने संसाधनों से समुद्र के तट पर पहुंचे। कोडीकरई वही स्थान है जहां पर सभी एकत्रित हुए। यहां पर श्रीराम की सेना का गठन हुआ। इससे पहले तक, सुग्रीव की सी थी और बाकी सब इंडिविजुअल थे। तमिलनाडु का यह स्थान आज भी एक प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल है। यहीं पर युद्ध की सभी तैयारियां की गई। सेवा का संयुक्त अभ्यास और समुद्र पार करने की रणनीति यही पर बनाई गई।
रामसेतु कोडीकरई से क्यों नहीं बनाया, रामेश्वरम क्यों गए
कोडीकरई से रामेश्वरम की दूरी 250 किलोमीटर है। रावण ने चेतावनी दे दी थी कि, यदि एक मास की अवधि के भीतर माता सीता ने उसकी शर्त को स्वीकार नहीं किया तो वह माता सीता के पिता के राज्य मिथिला और अयोध्या दोनों पर एक साथ हमला कर देगा। समय कम था। इसके बावजूद भगवान श्री राम ने रामसेतु के लिए कोडीकरई की अपेक्षा किसी दूसरे स्थान की खोज करने के लिए कहा। फिर समुद्र किनारे एक निर्जन स्थान देखा गया। यहां पर सुविधा और संसाधन नहीं थे। यहां से लंका की दूरी कोडीकरई की अपेक्षा ज्यादा थी परंतु फिर भी यहीं से रामसेतु बनाया गया।
इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स के लिए, यह अध्ययन का विषय हो सकता है कि कैसे 5000 साल पहले इस पृथ्वी पर सबसे पहले समुद्री पुल बनाने के लिए छोटी सी छोटी बातों तक का ध्यान रखा गया। हर प्रोजेक्ट के लिए लोकेशन इंपॉर्टेंट होती है। यहां पर भी यही बात थी। कोडीकरई क्षेत्र में समुद्र काफी उग्र है। यहां पर पुल बनाना संभव नहीं था, जबकि रामेश्वरम में समुद्र काफी शांत है। इसलिए भगवान श्री राम ने रामसेतु के लिए इस स्थान का चयन किया और आज यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र। आज भी रामेश्वरम में समुद्र का इंसानों के प्रति प्रेम, शांत स्वभाव और बदलता हुआ रूप दिखाई देते हैं। यहां के विश्व प्रसिद्ध मंदिर परिसर में 12 कुएं हैं जहां पर समुद्र के पानी के 12 अलग-अलग स्वाद और तापमान मिलते हैं। ✒ उपदेश अवस्थी