15 अगस्त 1947, जब पूरा भारत आजादी की हवा में सांस ले रहा था। भारत का राष्ट्रीय ध्वज लाल किले की प्राचीर पर लहरा रहा था, तब भोपाल शहर गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। यहां का नवाब भोपाल को पाकिस्तान में मिलाना चाहता था। इसलिए उसने तिरंगा लहराने पर प्रतिबंध लगा दिया था। यहां तिरंगा लहराने वालों को गोली मार दी जाती थी।
भोपाल के नवाब को वंदे मातरम से नफरत थी
कहानी 14 जनवरी 1949 की है। 15 अगस्त 1947 के लगभग 2 साल बाद भी भोपाल की जनता नवाब की गुलाम थी। भोपाल का नवाब (बॉलीवुड एक्टर सैफ अली खान के पूर्वज) अपनी रियासत को भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान में मिलाना चाहता था। इसके लिए उसने पाकिस्तान में भोपाल हाउस भी बनवा लिया था। भोपाल रियासत के इलाके में वंदे मातरम कहना और तिरंगा लहराना गुनाह था। जबकि भोपाल रियासत की जनता भारत में शामिल होकर अपने नवाब से स्वतंत्र होना चाहती थी।
तिरंगा लहराने वाली 6 नौजवानों को गोली मार दी गई थी
दिल्ली में गठित हो चुकी पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार तक मदद के लिए और भोपाल के नवाब तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए बोरास गांव (रायसेन जिले में स्थित) में तय किया गया कि मकर संक्रांति के मेले के अवसर पर तिरंगा लहराया जाएगा। नर्मदा तट पर स्थित बोरास गांव में तिरंगा लहराने की सूचना भोपाल के नवाब को मिल गई तो उसने अपने क्रूर थानेदार जाफर खान को तैनात कर दिया।
जाफर खान अपनी सेना को लेकर संक्रांति के मेले में पहुंच गया। उस ने ऐलान किया कि यदि किसी ने भी भारत के राष्ट्रीय ध्वज को लहराने की कोशिश की तो उसे गोली मार दी जाएगी। इसी दौरान 16 साल का एक नवयुवक (नाम धन सिंह) भीड़ को चीरता हुआ सामने आया और तिरंगा लहरा दिया। जाफर खान ने उसे गोली मार दी। जफर खान की गोली से धन सिंह तो जमीन पर गिरा लेकिन उसके दोस्तों ने तिरंगा नहीं गिरने दिया। एक के बाद एक नवयुवक जमीन पर गिरते तरंगे को थामते रहे और जाफर खान उन्हें गोली मारता रहा। इस तरह कुल 6 युवकों को गोली मार दी गई।
स्थानीय इतिहास में इस घटना को बोरास क्रांति एवं बोरास नरसंहार के रूप में दर्ज किया गया, लेकिन भारत के इतिहास में भोपाल की आजादी की लड़ाई का कहीं कोई जिक्र नहीं है।
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