CPC 34-3: न्यायलय द्वारा भावी ब्याज अर्थात Future Interest निर्धारित करने का नियम

फ्यूचर इंटरेस्ट अर्थात भविष्य का ब्याज दर का निर्धारण करना जब किसी वादी को लेनदेन के मामले में डिक्री (आज्ञप्ति) प्राप्त हो जाती है तब, न्यायालय पैसों के देनी अर्थात आदगी तक प्रतिवादी को मूलधन के पैसों के ब्याज के बारे में नियम निर्धारित कर सकता है जिसे हम भावी ब्याज कहते हैं। न्यायालय प्रतिवादी को डिक्री की तारीख से आदगी तक कितने प्रतिशत ब्याज भुगतान का आदेश दे सकता है जानिए।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 34 की उपधारा 03 की परिभाषा

सिविल कोर्ट की डिक्री प्राप्त होने की तारीख से देनगी किये जाने की तारीख तक के ब्याज के भुगतान का आदेश न्यायालय के विवेक अनुसार होगा अर्थात भावी ब्याज क्या होगा यह न्यायालय खुद डिसाइड करेगा लेकिन ब्याज की दर, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित अधिकतम वार्षिक ब्याज दर से अधिक नहीं होगी।

कुछ मामलों में भावी ब्याज (फ्यूचर इंटरेस्ट) क्या होगा जानिए:-

जहाँ कोई मामला वाणिज्यिक संविदा से हुआ है वहाँ ब्याज दर, निर्धारित बैंक ब्याज की दर से अधिक हो सकती है। लेकिन कोई व्यवसाय लेन देन है और संविदा नहीं हो पाई है तब वह राष्ट्रीयकृत बैंकों की दर के अनुसार होगी।

"कुलमिलाकर साधारण शब्दों में कहें तो व्यवसाय के लिए किसी प्रकार का लोन प्राइवेट या सरकारी बैंकों द्वारा लिया गया है तब भावी ब्याज भी बैंकों की शर्तों के अनुसार देना होगा इस संबंध में दो महत्वपूर्ण जजमेंट है जानिए।

1. विजया बैंक बनाम ट्रेड कॉरपोरेशन:- उक्त मामले में न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया कि वाणिज्यिक संव्यवहारो (संविदाओं) में ब्याज की दर राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा निर्धारित हो सकती है।

2. पंजाब नेशनल बैंक बनाम मे.विद्या हेचरी:- उक्त मामले में हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 34 के अंतर्गत ब्याज का निर्धारण करते समय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा समय-समय पर जारी निर्देशो को ध्यान में रखना चाहिए। 

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