राजमाता की अपराजेय लाडली के संघर्ष भरे 29 साल- यशोधरा राजे की कहानी

आज भाजपा की राजमाता विजया राजे सिंधिया की सबसे लाडली बेटी यशोधरा राजे सिंधिया का जन्म दिवस है। अपने दादा भाई माधवराव सिंधिया की तरह उन्होंने भी राजमाता की कहने पर राजनीति ज्वाइन की और अपने देश (शिवपुरी-ग्वालियर) की जनता की सेवा में जुट गई। सरकारी रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले 5 चुनावों में कभी कोई उन्हें टक्कर नहीं दे पाया परंतु यह भी उतना ही सही है कि पिछले 29 साल लगभग हर दिन संघर्ष भरा बीता है। भले ही वह राज परिवार से हैं परंतु राजनीति उनके लिए आसान नहीं है।

यशोधरा राजे ने खुद संघर्ष का रास्ता चुना

यशोधरा राजे सिंधिया, राजमाता की सबसे छोटी पांचवी संतान है। यही कारण है कि न केवल राजमाता बल्कि अपने बड़े भाई और बहनों की भी लाडली हैं। राज परिवारों के ऐसे बच्चे अक्सर आम नागरिकों से दूरी बनाकर रखते हैं परंतु यशोधरा राजे सिंधिया ने बचपन से ही राज महल के नियमों और परंपराओं की सीमाओं को तोड़कर आम लोगों के दर्द को समझने और उनके साथ संघर्ष करने का रास्ता चुना। बहुत कम लोग जानते हैं कि, जीवन में एक मोड़ ऐसा भी आया था जब यशोधरा राजे सिंधिया ने अपने लिए खुद खाना बनाया। बर्तन साफ किए, कपड़े धोए, आम नागरिकों के साथ लाइन में खड़ी हुई लेकिन अपनी मां की तरह सुविधाओं के लिए स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। 

राजनीति में संघर्ष पूर्ण सफलता के 29 साल

सब जानते हैं कि राजमाता सिंधिया ने राम मंदिर के लिए अपनी शादी की अंगूठी तक दान में दे दी थी। अपनी जनता के प्रति इसी समर्पण के कारण उन्होंने अपनी सभी संतानों को राजनीति में आने के लिए कहा। उन्हीं के आदेशानुसार माधवराव सिंधिया ने पहला चुनाव लड़ा था और उन्हीं के आदेशानुसार 1994 में, अपना सब कुछ अमेरिका में छोड़कर यशोधरा राजे सिंधिया भारत लौट आई और चुनाव लड़ा। तब से लेकर अब तक यशोधरा राजे ने एक भी चुनाव नहीं हारा, हर भाजपा सरकार में मंत्री पद मिला लेकिन राजनीति में उनका संघर्ष निरंतर जारी है। कभी अपने तो कभी विरोधी और कभी-कभी तो कुछ लोग बिना किसी कारण के सिर्फ अपना नाम सुर्खियों में बनाए रखने के लिए यशोधरा राजे सिंधिया के खिलाफ सक्रिय हो जाते हैं। 

यह सही है कि चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया अब तक अपराजेय हैं परंतु राजनीति में उनका संघर्ष निरंतर जारी है। राजमाता सिंधिया के त्याग और संघर्ष की कथाएं तो इतिहास में भी दर्ज है परंतु उनकी लाडली बेटी का संघर्ष अब तक कहीं किसी किताब में नहीं लिखा गया। ✒ उपदेश अवस्थी 

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