Sheetala Ashtami 2023- शीतला अष्टमी हिन्दुओं का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता का व्रत एवं पूजन किया जाता है। ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह में करते हैं। प्रायः शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है। शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है।
शीतला अष्टमी 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त -Sheetala Ashtami 2023 Date And Shubh Muhurat
- चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि आरंभ- 15 मार्च को सुबह 12 बजकर 09 मिनट से
- चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि समाप्त- 16 मार्च को रात 10 बजकर 04 मिनट पर
- शीतला अष्टमी पूजन का उत्तम मुहूर्त- सुबह 06 बजकर 20 मिनट से शाम 06 बजकर 35 मिनट तक
Sheetala Ashtami ki katha- शीतला अष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता अष्टमी का व्रत रखा। जिसमें उन्होंने माता को बासी चावल चढ़ाए और खाए। लेकिन उन्होंने शीतला अष्टमी के दिन सुबह ही ताजा भोजन बना लिया। क्योंकि उनकी दोनों को हाल में ही संताने हुई थी। जिसकी वजह से उन्हें डर था कि उन्हें बासी भोजन से नुकसान पहुंच सकता है। जब सास को इस बारे में पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुई। कुछ देर के बाद ही उनकी दोनो संतानों की मृत्यु हो गई। जब सास को यह पता चला तो उसने दोनो बहुओं को घर से निकला दिया
उस बुढ़िया की दोनो बहुएं बच्चों के साथ घर से निकला दिया। दोनो बहुएं चलते- चलते बहुत थक गई जिसके बाद वह आराम करने के लिए रूक गईं। वहां उन दोनों बहनों को ओरी और शीतला मिली। वह दोनों अपने सिर की जुओं से बहुत परेशान थी। बुढिया की बहुओं को दोनों बहनों को इस दशा में देखकर बहुत दया आ गई और दोनों बहुएं उनका सिर साफ करने लगी। कुछ देर के बाद जब दोनों बहनों को आराम मिल गया तो उन्होंने उन बहुओं को आर्शीवाद दिया की जल्द ही तुम्हारी कोख हरी हो जाए। यह देखकर दोनो बहने रोने लगी।
जिसके बाद दोनों बहुओं ने अपने बच्चों के शव उन दोनों बहनों को दिखाए। ये सब देखकर शीतला ने उनसे कहा कि तुमने शीतला अष्टमी के दिन ताजा भोजन बनाया था। जिसकी वजह से तुम्हारे साथ ऐसा हुआ। यह सब जानकर उन्होंने शीतला माता से क्षमा याचना की। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों के मृत शरीर में प्राण डाल दिए। जिसके बाद शीतला अष्टमी का व्रत पूरे धूमधाम से मनाया जाने लगा।