मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ग्राम पंचायत सचिव के पद से मुक्त किए गए पियूष कुमार बारई को 90 दिन के लिए पंचायत सचिव के पद पर बहाल कर दिया है। इसके साथ ही मध्यप्रदेश शासन को निर्देशित किया है कि वह पियूष कुमार बारई के मामले में उचित निर्णय लेकर आदेश पारित करे। हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि 90 दिन में आदेश का पालन नहीं हुआ तो यह न्यायालय की अवमानना मानी जाएगी।
पंचायत सचिव पियूष कुमार बारई अनियमितता के मामले में दोषी पाए गए थे
बैतूल निवासी पंचायत सचिव पियूष कुमार बारई की ओर से अधिवक्ता विवेक रंजन पांडे ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि आर्थिक अनियमितता के आरोप में कलेक्टर ने 20 मई, 2011 को पंचायत सचिव के अधिकारी छीन कर उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने के निर्देश दिए थे। इसके बाद अपील पर सुनवाई के दौरान नर्मदापुरम के संभागायुक्त ने याचिकाकर्ता के खिलाफ रिकवरी का आदेश जारी किया।
मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने पद मुक्त करने के आदेश जारी किए थे
याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के समक्ष रिवीजन प्रस्तुत की। राज्य सरकार ने छह सितंबर, 2016 को याचिकाकर्ता को उसके मूल पद पंचायत कर्मी से पदमुक्त कर दिया। पंचायत राज अधिनियम के नियुक्ति नियम 1999 के तहत राज्य सरकार को पंचायत कर्मी को उसके मूल पद से अलग करने का अधिकार नहीं है।
90 दिन में निर्णय नहीं हुआ तो न्यायालय की अवमानना मानी जाएगी
सुनवाई के बाद कोर्ट ने पाया कि सरकार ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर उक्त आदेश जारी किया है, जोकि अवैधानिक है। कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए मामला पुन: रिमांड कर दिया और नए सिरे से निर्णय लेने के निर्देश दे दिए। न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि राज्य शासन ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर पंचायत कर्मी को उसके मूल पद से अलग किया है, जो अवैधानिक है। लिहाजा, राज्य शासन इस सिलसिले में 90 दिन के भीतर नए सिरे से विचार करे। इस बीच याचिकाकर्ता को पद पंचायत कर्मी पर बहाल करने की व्यवस्था दी जाती है। इस सिलसिले में किसी तरह की लापरवाही न की जाए। ऐसा करना अवमानना माना जाएगा।