जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 20 साल से चले आ रहे एक विवाद का निराकरण करते हुए फैसला सुनाया है कि शासकीय अनुकंपा में किसी को संविदा नियुक्ति नहीं दी जा सकती। अनुकंपा के प्रावधानों के अनुसार कृपा पात्र व्यक्ति स्थाई नियुक्ति का अधिकारी होता है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ₹100000 जुर्माना अदा करने एवं 2 महीने के भीतर स्थाई नियुक्ति देने का आदेश दिया है।
चीफ जस्टिस रवी मलिमठ एवं जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने अपने जजमेंट में डायरेक्टरेट वेटरनरी साइंस भोपाल को आर्डर दिया है कि 8 हफ्ते के भीतर हाई कोर्ट के डिसीजन का पालन किया जाए। हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकारियों के गलत कार्य व्यवहार के कारण गंभीर अन्याय हो गया है। इसलिए अधिकारियों पर जुर्माना लगाना आवश्यक है।
धर्मेंद्र कुमार त्रिपाठी विरुद्ध मध्य प्रदेश शासन- अनुकंपा नियुक्ति विवाद
धर्मेंद्र कुमार त्रिपाठी ने अपील प्रस्तुत की थी कि उसके पिता असिस्टेंट वेटनरी ऑफिसर के पद पर कार्यरत थे उनकी साल 2000 में मृत्यु हो गई थी याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रख रहे अधिवक्ता ने बताया कि धर्मेंद्र को 26 जून 2002 में संविदा शाला शिक्षक वर्ग 2 के रूप में 3 साल के लिए नियुक्ति दी गई उसके 5 माह बाद 26 नवंबर को संविदा नियुक्ति भी समाप्त कर दी गई याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखा गया कि अधिकारियों की गलत कार्यशैली से आवेदक के साथ अन्याय हुआ है।
हाईकोर्ट में मध्यप्रदेश शासन की दलील
शासन की ओर से दलील दी गई कि याचिकाकर्ता 12 साल बाद 2014 में हाई कोर्ट में याचिका दायर करने पहुंचा था जिसे देरी के आधार पर खारिज किया जाना चाहिए। शासन ने यह भी कहा कि उस वक्त कोई भी पद खाली नहीं था। इसलिए अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकी।
दोनों पक्षों के तर्को को सुनने के बाद हाईकोर्ट में जजमेंट सुनाया की शासकीय अनुकंपा में अस्थाई नौकरी दिए जाने का प्रावधान नहीं है। स्थाई नियुक्ति दिए जाने का ही प्रावधान है। अधिकारियों ने अनुकंपा के नाम पर संविदा नियुक्ति देकर अन्याय किया है। इसलिए जुर्माना अदा करें और 8 हफ्ते यानी 2 महीने के भीतर याचिकाकर्ता को नियुक्ति प्रदान करें।