MPPSC संचालक मंडल भंग करके नए सिरे से नियम बनाना चाहिए- Khula Khat

Madhya Pradesh Public Service Commission
(मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग) का गठन भारत के संविधान के भाग-14 के अंतर्गत अनुच्छेद 315-323 के तहत किया गया है। अब समय आ गया है कि इसके पूरे संचालक मंडल को भंग करके नए सिरे से संचालन के नियम बनाने चाहिए। ऐसे नियम जो संचालक मंडल को उम्मीदवारों के प्रति जिम्मेदार बनाते हों और आयोग को राजनीतिक दबाव से पूरी तरह से मुक्त करते हों। 

मध्यप्रदेश में राज्य लोक सेवा आयोग एक ऐसा संस्थान बन गया है जो उम्मीदवारों की जिंदगी के साथ खेल रहा है। राज्य सेवा परीक्षा 2019 के उम्मीदवार इंटरव्यू का इंतजार कर रहे हैं। 2020 की परीक्षा में विवाद है। 2021 की परीक्षा विवादित हो गई है। पिता ने बच्चे की पढ़ाई के लिए लोन लिया था। बच्चे ने पीएससी पास कर लिया फिर भी नियुक्ति नहीं हो रही। पिता की मृत्यु हो गई। जो युवा राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए था, वह प्राइवेट जॉब करके लोन चुका रहा है। ऐसी दर्जनों कहानियां है। एमपीपीएससी से पूछो तो कहते हैं कि हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया है। सवाल यह है कि गलती किसने की थी, जो हाई कोर्ट को स्टे आर्डर जारी करना पड़ा। 

एमपीपीएससी में यदि उम्मीदवार निर्धारित तारीख तक फीस जमा ना करें तो एडमिट कार्ड जारी नहीं होता। निर्धारित समय पर परीक्षा केंद्र में ना पहुंचे तो परीक्षा नहीं देने देते और एमपीपीएससी निर्धारित तारीख पर परीक्षा ना कराए, रिजल्ट जारी न करे, तो उसके संचालक मंडल के लिए कोई दंड प्रावधान नहीं है। सभी तरह के बंधन उम्मीदवारों पर हैं। संचालक मंडल ना तो जवाबदेह है और ना ही जिम्मेदार।

सरकारी डिपार्टमेंट खेल खेलते रहते हैं। परीक्षा खत्म होने के बाद तक रिक्त पदों की संख्या में बदलाव होता रहता है। रिजल्ट आने के बाद नियुक्ति के नियम परिवर्तित कर दिए जाते हैं। कहने को आयोग संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अनुसार एक संवैधानिक निकाय है परंतु जिस तरह के आदेश और बयान जारी होते हैं, ऐसा लगता है जैसे सरकार का एक डिपार्टमेंट है। 

समय आ गया है, जब भारत बदल रहा है, एमपीपीएससी के सभी नियमों को बदल दिया जाना चाहिए। उम्मीदवार फीस अदा करते हैं। यदि एक बार विज्ञापन जारी किया तो नियुक्ति पत्र तक की जिम्मेदारी एमपीपीएससी की होनी चाहिए। तारीख भी निर्धारित होनी चाहिए। गलती करने वाले आयोग के विद्वानों के खिलाफ कड़े दंड का प्रावधान होना चाहिए। जब विद्वान को बड़ा पारिश्रमिक दिया जाता है तो फिर बड़ा दंड भी दिया जाना चाहिए। आनंद बंदेवार, एक उम्मीदवार

अस्वीकरण: खुला-खत एक ओपन प्लेटफार्म है। यहां मध्य प्रदेश के सभी जागरूक नागरिक सरकारी नीतियों की समीक्षा करते हैं। सुझाव देते हैं एवं समस्याओं की जानकारी देते हैं। पत्र लेखक के विचार उसके निजी होते हैं। इससे पूर्व प्रकाशित हुए खुले खत पढ़ने के लिए कृपया Khula Khat पर क्लिक करें. यदि आपके पास भी है कुछ ऐसा जो मध्य प्रदेश के हित में हो, तो कृपया लिख भेजिए हमारा ई-पता है:- editorbhopalsamachar@gmail.com

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