जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने एडीजे को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के रूप में दिए दंड को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने सेवानिवृत्त एडीजे पर लगाए आरोपों को भी निरस्त कर दिया।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में तल्ख टिप्पणी करते हुए साफ किया कि एक न्यायाधीश कोर्ट का स्टेनोग्राफर नहीं होता जो हर कही गई बात को अपने आदेश पत्रिका में रिकार्ड करे। जो जरूरी तथ्य होते हैं सिर्फ वह ही एक जज के द्वारा आदेश पत्रिका में रिकार्ड किया जाता है। वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रायन डिसिल्वा व अधिवक्ता अभिषेक दिलराज ने बताया कि गुना में पदस्थ रहने के दौरान एडीजे केसी रजवानी पर पैसे लेकर जमानत देने का आरोप लगा। इसके अलावा फैसला और सुनवाई करने में देरी का भी आरोप था।
आरोपों के आधार पर इनके खिलाफ विभागीय जांच की गई और वर्ष 2006 में उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। इसी को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। मामले पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 25 प्रतिशत वेतन संबंधी फायदे देने का आदेश किया। यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को चार माह के भीतर सभी वेतन संबंधी लाभ का भुगतान करें। हाई कोर्ट के इस आदेश को अधीनस्थ अदालतों के जजों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इससे उनके बीच कार्यगत जटिलता सहित अन्य समस्याओं का समाधान होने की उम्मीद जागी है।