जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जस्टिस मनिंदर सिंह भट्टी और जस्टिस पीसी गुप्ता की अवकाशकालीन डिवीजन बेंच ने केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग सचिव, राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल भोपाल के रजिस्ट्रार एवं नेशनल मेडिकल कमीशन के सचिव को नोटिस जारी कर पूछा है कि डिप्लोमा इन एनएसथीसिया कोर्स को अमान्य क्यों माना गया है जबकि पूर्व में इस कोर्स को मान्यता दी गई थी।
दमोह निवासी डॉ अलका सोनी ने याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि उन्होंने 2010 में देश के प्रतिष्ठत और प्राचीन कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन मुंबई (सीपीएस) से डिप्लोमा इन एनेस्थीसिया का कोर्स किया। अधिवक्ता आदित्य संघी ने तर्क दिया कि केन्द्र सरकार ने 2018 में अधिसूचना जारी कर वर्ष 2009 से इस कोर्स को मान्यता दी।
प्रदेश सरकार ने भी राजपत्र में गजट नोटिफिकेशन के जरिए मप्र आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम में संशोधन कर 11 फरवरी 2020 को इस कोर्स को मान्यता दी। याचिकाकर्ता ने इस कोर्स के आधार पर मप्र मेडिकल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया, लेकिन मेडिकल काउंसिल ने आवेदन निरस्त कर दिया।
अधिवक्ता संघी ने तर्क दिया कि जिस कोर्स को केंद्र व राज्य सरकार ने की मान्यता है तो मेडिकल काउंसिल द्वारा सुनवाई का अवसर दिए बिना पंजीयन का आवेदन निरस्त करना अनुचित व अवैधानिक है। प्रारम्भिक सुनवाई के बाद कोर्ट ने अनावेदकों को नोटिस जारी किए।