ऋदम अवस्थी। दुनिया को कोरोनावायरस के बारे में 31 दिसंबर 2019 को पता चला था। दुनिया भर में महामारी अलग-अलग समय पर फैली लेकिन भारत में कोरोनावायरस का संक्रमण मार्च 2020 को बढ़ना शुरू हुआ। इस साल 2021 में भी मार्च में संक्रमण बढ़ना शुरू हुआ और अप्रैल में रिकॉर्ड तोड़ गया। यदि इन तारीखों को पंचांग पर रखें तो एक बात कॉमन है और वह यह कि जब संक्रमण बढ़ा तब बसंत ऋतु थी।
वसंत ऋतु का कोरोनावायरस से संबंध क्या हो सकता है
वैज्ञानिकों के लिए यह अनुसंधान का विषय है लेकिन हमारा एक सामान्य अध्ययन यह बताता है कि भारत में कोरोनावायरस का संक्रमण उस समय और उन्हीं स्थानों पर जानलेवा हो जाता है जबकि पतझड़ का मौसम हो। ज्यादातर वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं। यह बताने की जरूरत नहीं की वृक्षों के पत्तों से ऑक्सीजन उत्सर्जित होती है जो मनुष्य के जीवन के लिए अनिवार्य है। पतझड़ में पत्ते झड़ जाते हैं इसलिए वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। वायरस तो पहले से मौजूद है, ऑक्सीजन कम होने के कारण वह जानलेवा हो जाता है। 2021 में अकाल मृत्यु की जितनी भी खबरें आ रही हैं उनमें 70% से अधिक मृत्यु का कारण ऑक्सीजन की कमी है।
साल में एक बार शहरी इलाकों में ऑक्सीजन की कमी होती है
विज्ञान की किताब बताती है कि मई-जून से नवम्बर तक जब उत्तरी गोलार्ध (भारत उत्तरी गोलार्ध में आता है) में वनस्पतियों में पत्ते रहते है तब वहाँ के वन-क्षेत्र एक बहुत बड़े वैक्यूम क्लीनर की तरह उत्तरी गोलार्ध की सफाई करते हैं। यानी जून के महीने से कोरोनावायरस से होने वाली मृत्यु की दर कम होने लगती है और दिसंबर तक आते आते हैं सबसे कम हो जाती है। दिसंबर से मार्च तक सब कुछ सामान्य हो जाता है।
दक्षिणी गोलार्ध में इसकी विपरीत स्थिति होती है। वैज्ञानिक इसके आधार पर पता लगा सकते हैं कि क्या पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में जून से लेकर नवंबर तक कोरोनावायरस कमजोर रहता है और दक्षिणी गोलार्ध में इसके विपरीत स्थिति होती है। यदि हां, तो पर्याप्त संकेत है कि पतझड़ में ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों की संख्या कम होने के कारण कोरोनावायरस जानलेवा होता जा रहा है। ब्लाॅगर ऋदम अवस्थी, सेंट थेरेसा स्कूल, भोपाल मध्य प्रदेश में कक्षा 10 की छात्रा है।