खजराना का नाम क्यों बदलना चाहते हैं सांसद, पढ़िए खजराना का इतिहास और कहानी - INDORE NEWS and MP GK IN HINDI

इंदौर।
भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं सांसद शंकर लालवानी ने खजराना का नाम बदल कर गणेश नगर रखने की सिफारिश की है। इसके पीछे उनका कोई लॉजिक या स्टडी नहीं है, बस इतना कहा है कि लोग खजराना का नाम बदलना चाहते हैं और उनकी आस्था का सम्मान करना चाहिए। सांसद लालवानी के इस बयान के बाद हजारों लोगों को पहली बार पता चला कि 'खजराना' हिंदू नाम नहीं है। आइए जानते हैं इस इलाके को खजराना क्यों कहते हैं। खजराना कब अस्तित्व में आया और यहां क्या-क्या बदलता गया। 

इंदौर से पुराना है खजराना का इतिहास 

इंदौर शहर से पूर्व रिंगरोड और बायपास के बिचौ-बीच स्थित खजराना में हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मों के पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इतिहास के पन्नों में पहली बार इसका नाम परमार राजाओं के शासनकाल में मिलता है। इसका मतलब करीब 1000 साल पहले जब इंदौर अस्तित्व में नहीं था और जब राजा भोज उज्जैयनी और धार में शासन करते थे, तब खजराना अस्तित्व में था। 

खजराना में हिंदू और मुसलमानों के विश्व विख्यात धर्म स्थल

खजराना को सारी दुनिया में गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। बोलचाल की भाषा में खजराना के गणेश कहा जाता है परंतु श्री गणेश के कारण ही खजराना का अस्तित्व और पहचान है। इसके ठीक आगे कालिका माता मंदिर भी अपनी सबसे बड़ी प्रतिमा को लेकर विख्यात है। थोड़ा आगे बढ़ने पर प्रसिद्ध मुस्लिम सूफी संत हजरत नाहरशाह वली की दरगाह है। यह वही दरगाह है जिसकी दुआ से अली गौहर को अपने पिता आलमगीर की गद्दी नसीब हुई थी। 

खजराना नाम किसने दिया 

इतिहास में इस बारे में कोई प्रमाण नहीं मिलते। यह भी पता नहीं चलता कि खजराना नाम संस्कृत और हिंदी से आता है या अरबी या फिर उर्दू से। क्योंकि यह परमार राजाओं के शासनकाल में अस्तित्व में आया है इसलिए यह माना जाता है कि खजराना संस्कृत या हिंदी का शब्द रहा होगा। या फिर शायद परमार शासनकाल में बोली जाने वाली स्थानीय बोली का कोई शब्द होगा।

खजराना गणेश का इतिहास 

इंदौर के खजराना इलाके में स्थापित श्री गणेश की प्रतिमा किसी मूर्तिकार ने नहीं बनाई बल्कि यह एक स्वयंभू प्रतिमा है। इस स्थान पर कब से स्थापित है किसी को नहीं पता लेकिन करीब 1000 साल पहले इस के दर्शन किए गए थे। और तभी से इस प्रतिमा का पूजा पाठ होता आ रहा है। मुगल आक्रमणकारी औरंगजेब जब दक्षिण की यात्रा पर निकला तो रास्ते में पड़ने वाले सभी मंदिरों को तोड़ता जा रहा था। उस समय भट्ट परिवार द्वारा श्री गणेश की स्वयंभू प्रतिमा को एक कुएं में छुपा दिया गया। 1935 में अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल के दौरान श्री गणेश की प्रतिमा को पुणे से बाहर निकाला गया और भव्य मंदिर का निर्माण करा कर विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की गई। खजराना के श्री गणेश भारत के उन चुनिंदा स्वयंभू गणेश प्रतिमाओं में से एक है जिनके स्मरण मात्र से कष्ट दूर हो जाते हैं। दर्शन मात्र से रिद्धि और सिद्धि की प्राप्ति होती है। जीवन में स्वास्तिक का संचार होता है।

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