कर्मचारियों की एकता मेढ़क तोलने के समान है! - Khula Khat

कन्हैयालाल लक्षकार। एक जमाना था जब कर्मचारियों-अधिकारियों के मप्र में केवल तीन संगठन थे। मप्र राजपत्रित अधिकारी संघ, मप्र तृतीय वर्ग शास कर्मचारी संघ एवं मप्र लघुवेतन कर्मचारी संघ। यही संगठन लाखों कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते थे। इनकी हुंकार से सरकार हरकत में आ जाती थी। इनके आंदोलन को सरकार गंभीरता से लेती थी। 

वर्तमान में कर्मचारियों के वेतनमान व जीवन स्तर सरकारों ने थाली में परोस कर नहीं दिये है, ये इनके एतिहासिक आंदोलनों के सुखद परिणाम है। कालांतर में विभिन्न विभागों, वर्गो, व जातिगत संगठनों को शासन की मान्यता से अंग्रेजी चाल "फूट डालो राज करो" की नीति कारगर सिद्ध हुई। इसके साथ ही गैर मान्यता प्राप्त छोटे-छोटे संगठनों के गठन, आंतरिक लोकतंत्र की उपेक्षा व आपसी विवाद ने कर्मचारियों को ओर कमजोर कर दिया। 

किसी संगठन में आपसी विवाद के निराकरण हेतु जाजम पर बैठकर सुलह के बजाय अपनी नई जाजम बिछाने से, विवाद समाप्त होने के उसमें वृद्धि ही हुई है। साथ ही एकता की ताकत छिन्न-भिन्न होकर बिखरती चली गई। जब महत्वाकांक्षाऐं परवान चढ़ती है, तब "एक स्तर के व्यक्ति" एक दूसरे के साथ काम करने में असहज महसूस करते हैं। यहीं से फूट के बीज जड़े जमाने लगते है। 

यह काल्पनिक है कि पृथक होकर अलग-अलग राज्य की कल्पना ग्लोब के विभिन्न हिस्सों पर बैठ कर संपूर्ण धरा पर अपना एकमात्र साम्राज्य मानना स्वांतसुखाय हो सकता है। इससे एकता संदिग्ध बनी रहेगी। संगठन की एकता के नाम पर अलग-अलग जाजम बिछाई गई है; इस वृत्ति ने उस संगठन को कमजोर ही किया है। जाजम की लड़ाई का समाधान जाजम पर ही संभव हैं। जब तक विवादित पक्ष एक जाजम पर बैठेंगे नही विवाद निराकरण संभव नहीं है। हर पक्ष अपने को निर्विवाद मानता है लेकिन यह वास्तविकता से परे है। 

लब्बोलुआब यह है कि संगठनों के संचालकों ने पदलोलुपता अतिमहत्वाकांक्षा व राजनीतिक निकटता के चलते कर्मचारियों के हितों की बलि देने से भी गुरेज नहीं की हैं। इससे सरकारें कर्मचारियों की जायज मांगों को पूरा करने के बजाय उसमें वृद्धि करने से भी बाज नहीं आ रही है। इसका ताजा उदाहरण है कोरोना के बहाने डीए डीआर आदेश के बावजूद, छठें सातवें वेतनमान के आधार पर देय एरियर की किश्त व नियमित वार्षिक वेतनवृद्धि रोकना। 

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के साथ के अधिकारियों को इससे मुक्त रखा गया है। आज की वास्तविकता यह है बुध्दिजीवियों की एकता की कल्पना मेढ़क तोलने के समान है।
लेखक कन्हैयालाल लक्षकार, मप्र तृतीय वर्ग शास कर्मचारी संघ के कार्यकर्ता हैं एवं मनासा, जिला-नीमच में रहते हैं। संपर्क: 9424099237, 9340839574

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