कई बार ऐसा होता है, आपके हाथ से कुछ ऐसा हो जाता है जो आप करना नहीं चाहते थे। कभी-कभी वह अपराध की श्रेणी में आ जाता है। नतीजा FIR दर्ज होती है और पुलिस विवेचना के बाद मामले को कोर्ट के सामने पेश करती है। कहा जाता है कि अपराध, अपराध होता है और हर अपराध के लिए एक सजा होती है परंतु हम यहां आपको बता रहे हैं कि कुछ अपराध ऐसे भी होते हैं जो अनजाने में हो जाते हैं और उनके लिए कोई सजा नहीं होती। ध्यान से पढ़िए, क्योंकि लगभग हर व्यक्ति की जिंदगी में कम से कम एक बार ऐसा समय जरूर आता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 76 की परिभाषा
अगर किसी व्यक्ति द्वारा बिना छल-कपट की भावना के ऐसा अपराध किया जाता हैं, जो कानून की निगाह में सही (विधि आबद्ध) लगता है, पर वहाँ पर कुछ तथ्यों की भूल होने के कारण अपराध घटित हो जाता हैं। वह अपराध धारा 76 के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
उधारानुसार वाद:-पश्चिम बंगाल राज्य बनाम शिवमंगल सिंह - एक अंधेरी रात में जब पुलिस दल गश्त लगा रहा था, उस गश्त दल पर किसी अनजान व्यक्ति ने हमला कर दिया। परिणामस्वरूप एक सहायक पुलिस कमिश्नर घायल हो गया। डिप्टी पुलिस कमिश्नर के आदेश पर पुलिस दल ने फायरिंग की जिससे एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। इस मामले के तथ्यो को समझते हुए न्यायालय ने निर्णय दिया कि पुलिस दल का कार्य विधि आबद्ध (वैध) तथा न्यायोचित था, अतः धारा 76 के अंतर्गत अपराध नही होगा।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 79 की परिभाषा
कोई ऐसे कार्य में दखल-बाजी (इंटरफेयर) करना जो कानून तौर पर सही हो एवं बिना छल कपट की भावना से विश्वास से करना। अगर वहाँ पर तथ्यों की भूल के कारण कोई अपराध हो जाता है। वह अपराध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 79 के अंतर्गत अपराध नहीं होगा।
उधारानुसार वाद :- उड़ीसा राज्य बनाम खोरा घासी:- जिस समय आरोपी अपने गेहू के खेत की देख- रेख कर रहा था उसे खेत में एक हिलती-डुलती आकृति दिखाई दी जिसे उसने भालू समझ कर तीर से मार डाला, जबकि वास्तव में वहां एक आदमी छिपा बैठा था जो आरोपी द्वारा मारा गया। यहां पर आरोपी को धारा 79 के अधीन संरक्षण दिया गया। और आरोपी को हत्या का दोषी नहीं माना गया।
नोट:- यहां पर धारा 76 एवं 79 दोनो समान दिख रही है पर दोनों में अन्तर है, सरल तरीके से धारा 76 के अनुसार कोई व्यक्ति उस विधि के बाध्य आदेश को ध्यान में रखकर कृत्य कर रहा है एवं धारा 79 में ऐसा कार्य को बिना छल -कपट के रोकना जो कानूनी तरीके से गलत है। दोनों धाराओं में तथ्यों की भूल को देखा जाता है, न कि विधि की भूल को। स्पष्ट है कि तथ्यों की भूल से किया गया अपराध क्षमा योग्य हो सकता है, पर विधि की भूल का अपराध किसी भी स्तर पर क्षमा योग्य नहीं है।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद (पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665