सरकारी डॉक्यूमेंट की FAKE कॉपी बनाने वाले को कितनी सजा होती है | KNOW YOUR LAW

Bhopal Samachar
आजकल सरकारी दस्तावेजों की कूट रचना आम बात हो गई है। लोग किसी भी गवर्नमेंट डॉक्यूमेंट की फेक कॉपी बना लेते हैं। किसी से पैसा लेकर उसे झूठा नियुक्ति पत्र दे दिया जाता है। किसी को फर्जी मार्कशीट थमा दी जाती है। फर्जी मैरिज सर्टिफिकेट का धंधा तो बहुत पुराना है। सरकारी नक्शे में फेरबदल भी सदियों पुराना धंधा है। नकली नोट भी बनाए जाते हैं। कई बार पॉलिटिकल फायदे या सनसनी फैलाने के लिए किसी सरकारी आदेश की फर्जी कॉपी बनाई जाती है। यहां तक कि पिछले दिनों कुछ अधीनस्थ कर्मचारियों ने अपने अधिकारी की सील व दस्तावेजों का दुरुपयोग करते हुए जेल में बंद कैदियों के जमानत आदेश जारी कर दिए थे। यह सभी गंभीर अपराध है। आइए जानते हैं इस तरह का अपराध करने पर IPC की किस धारा के तहत मामला दर्ज हुआ और अधिकतम कितनी सजा होगी।

क्या कहती हैं IPC की धारा 466:

अगर कोई व्यक्ति निम्न प्रकार के कृत्य करता है तो इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा
1. किसी भी न्यायालय के रजिस्ट्रार में बदलाव (कूटरचना) करेगा या कोई न्यायालय में झूठे साक्ष्य देगा या जाली दस्तावेज देगा।
2. लोक रजिस्टर में बदलाव करेगा (लोक-सेवक द्वारा बनाया गया रजिस्टर)। या सरकारी कर्मचारी द्वारा कोई बनाया गया प्रमाण-पत्र जैसे:- जाली विवाह प्रमाण पत्र, जाली बसियत, जाली अंकसूची, या सूची, आंकड़ा, रिकॉर्ड जाली आदि बनाना।
3. इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख द्वारा बनाए गए झूठे प्रमाण पत्र, माइक्रो फ़िल्म, एडिटिंग विडियो, ऑनलाइन रिकॉर्ड, जाली निर्देश बनाना आदि।
4. किसी सरकारी कागजातों में फेरबदल करना या काट-पीट करना। इसने दो धारा अंतर्गत करवाई होती हैं । धारा 466 एवं धारा 193 (धारा- 193 झूठे साक्ष्य गढ़ना)।

वह कार्य जो अपराध नहीं है:

1.अगर कोई लोक रजिस्टर में ऐसा नाम जुड़ गया है। जो मृत्य था या निवास छोड़ दिया ऐसे नाम को लोक रजिस्टर से हटाना अपराध नही है।
2. अगर कोई प्रमाण पत्र, अंकसूची या किसी दस्तावेज में गलत नाम लिखा गया है उसको हटाना या बदलना अपराध की श्रेणी में नही आता है।

धारा 466 में दण्ड:-

अगर को व्यक्ति भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 466 के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो उसको 7 (सात) वर्ष की कारावास एवं जुर्माने से भी दण्डित किया जाएगा।

उदहारण:- 
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम रंजीत सिंह वाद आरोपी उच्च न्यायालय में स्टेनोग्राफर के पद पर कार्यरत था। उसने जाली जमानत आदेश तैयार किया। इस आदेश का उपयोग उसने अपने संबधित व्यक्ति को बैल (जमानत) दिलाने के लिए किया। इस प्रकार उस संबंधित व्यक्ति को जमानत मिल गई परंतु वह जमानत का हकदार नहीं था। न्यायालय ने माना कि इससे लोक क्षति हुई है। अंत मे उच्च न्यायालय ने आरोपी स्टेनोग्राफर को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 466 के तहत दोषी ठहराया गया।
बी.आर. अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665

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