लखनऊ। बेसिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश की टीचर्स ट्रांसफर पॉलिसी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उचित ठहराते हुए उसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है। प्राथमिक अध्यापकों के लिए यह तबादला नीति 2 दिसंबर 2019 को जारी की गई थी। हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका में उत्तर प्रदेश की ट्रांसफर पॉलिसी को संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत बताया गया था। कोर्ट ने कहा कि प्राथमिक अध्यापक को तबादला कराने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ट्रांसफर पॉलिसी में इंटरफेयर नहीं कर सकता जब तक वह संविधान के खिलाफ ना हो
हाई कोर्ट ने कहा कि तबादला नीति में शर्तें लगाना प्रशासन का कार्य है। जब तक वह मनमाना पूर्ण या संविधान के खिलाफ न हो तब तक कोर्ट उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने मनोज कुमार व 29 अन्य अध्यापकों की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने प्राथमिक अध्यापकों के तबादला नीति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है।
विशेष मामलों में वरीयता देना संविधान के खिलाफ नहीं होता: हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी अध्यापक को तबादला कराने का कोई अधिकार नहीं है। तबादला नीति के तहत किसी को शहर से ग्रामीण या ग्रामीण से शहरी एरिया में तबादला कराने का भी अधिकार नहीं है, लेकिन महिला अध्यापक व अध्यापकों या परिवार के सदस्य की गंभीर बीमारी की दशा में तबादले में वरीयता देने की व्यवस्था कानून के विपरीत नहीं है।
उत्तर प्रदेश में महिला अध्यापकों को ट्रांसफर में वरीयता
याचिका में दो दिसंबर 2019 को जारी तबादला नीति के कालम 8(4) की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। जिसके तहत पांच अतिरिक्त क्वालिटी प्वाइंट देकर महिला अध्यापकों को वरीयता देने की व्यवस्था की गई है। उसे कोर्ट ने गलत नहीं माना और कहा कि महिलाओं को वरीयता देने से कानून या संवैधानिक उपबंध का उल्लंघन नहीं होता है।