भारत में कर्मचारियों को साप्ताहिक छुट्टी (रविवार अवकाश) कब से शुरू हुई, पढ़ें मजेदार कहानी | GK IN HINDI

भारत, मौसम और पंचांग के आधार पर चलने वाला देश था। भारत देश में सप्ताह की परंपरा ही नहीं थी। या तो पक्ष (15 दिवस की अवधि) हुआ करता था। पड़वा से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष और फिर पड़वा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष। भारत के नागरिक उद्यमी थे, उनका जीवन मौसम पर आधारित था। प्रश्न यह है कि फिर भारतीय नागरिकों का जीवन सप्ताह के आधार पर कैसे विभाजित हुआ। रविवार को अवकाश की परंपरा कब से शुरू हुई। कर्मचारियों को संडे की छुट्टी किसने दिलवाई। क्या अंग्रेज सरकार अपने कैलेंडर के साथ संडे ऑफ का फंडा भी लेकर आई थी या फिर रविवार का अवकाश भी अंग्रेजों से छीनना पड़ा। कर्मचारियों को अपनी हर मांग पूरी करवाने के लिए आंदोलन करना पड़ता है। क्या वीकली ऑफ के लिए भी कोई आंदोलन हुआ था। पढ़िए एक मजेदार कहानी जो आपकी जानकारी भी बढ़ाएगी।

भारत में कर्मचारियों को साप्ताहिक छुट्टी (रविवार अवकाश) किसने दिलाया

नारायण मेघाजी लोखंडे ये जोतीराव फुलेजी के सत्यशोधक आन्दोलन के कार्यकर्ता थे। और कामगार नेता भी थे। अंग्रेजी शासन काल से पहले भारत में मौसम और तीज त्योहारों के अनुसार राज दरबार की कर्मचारियों को अवकाश प्राप्त होते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी आने के बाद कंपनी के कर्मचारियों को मौसम एवं तीज त्यौहार के अनुसार अवकाश देने की परंपरा बंद कर दी गई। तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी (जो सब के सब भारतीय थे) सप्ताह के सभी सातों दिन काम लिया जाता था। तब नारायण मेघाजी लोखंडे सामाजिक कामों के लिए 1 दिन अवकाश की मांग की। इसके लिए उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने 1881 में प्रस्ताव रखा लेकिन अंग्रेज अधिकारियों ने उनका प्रस्ताव मंजूर करने से इंकार कर दिया। 

कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश के लिए 8 साल तक आंदोलन करना पड़ा

बता दें कि ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज अधिकारी संडे को अपना अवकाश रखते थे। इस दिन अंग्रेज अधिकारी सुबह सवेरे चर्च में जाते थे। लंच टाइम तक सभी अधिकारी चर्च परिसर में एक दूसरे के साथ समय बिताते थे। शाम को पारिवारिक मित्रों के साथ डिनर करते थे। इस तरह को साप्ताहिक अवकाश रविवार का उपयोग अपने सामाजिक मेल मिलाप के लिए करते थे। भारतीय कर्मचारी नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने सामाजिक कामों के लिए 1 दिन का साप्ताहिक अवकाश मारा था जो नामंजूर कर दिया गया। आख़िरकार नारायण मेघाजी लोखंडे जी को sunday की छुट्टी के लिए 1881 में आन्दोलन करना पड़ा। ये आन्दोलन दिन-ब-दिन बढ़ते गया। लगभग 8 साल ये आन्दोलन चला। आखिरकार 1889 में अंग्रेजो को sunday की छुट्टी का ऐलान करना पड़ा।
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