क्या राहुल गांधी और कमलनाथ को भरोसा करने का यह फल मिलेगा: अतिथि विद्वान | ATITHI VIDWAN NEWS

भोपाल। अतिथिविद्वानों के धरने के आज 14वां दिन। भोपाल स्थित शाहजहानी पार्क में चल रहे सूबे के शासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत अतिथिविद्वानों के धरना और आन्दोलन का आज 14वां दिन भी बीत गया किन्तु एक सरकारी आदेश की प्रतीक्षा करते करते अतिथिविद्वानों की आंखें पथरा सी गई हैं और सरकार है कि अपने रुख पर अड़ी हुई है। अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजकद्वय डॉ देवराज सिंह एवं डॉ सुरजीत भदौरिया के अनुसार अनशन का आज 14वां दिन बीत चुका है किंतु हमने सरकार के एक आदेश की प्रतिक्षा करते-करते कई दिन और रात इसी पंडाल में गुज़ार दिए है। जितना निष्ठुर ये सर्दी का मौसम है उनती ही निष्ठुर हमारे विषय पर ये सरकार बनी हुई है। जबकि हमने अपने अधिकार प्राप्ति की इस लड़ाई को केवल गांधीवादी एवं एक शिक्षक की गरिमा के अनुसार ही चलाया है। इसी कारण से लगातार हम शाहजहानी पार्क में 14 दिन बीत जाने के बाद भी बने हुए है। सरकार से केवल एक ही विनती है की अतिथिविद्वानों के भविष्य को बर्बाद होने से बचा लें। हमारे परिवार आज सड़क में आ चुके है। क्या राहुल गांधी, कमलनाथजी और कांग्रेस पार्टी तथा उसके वचन पर विश्वास करने का यही फल हमें मिलेगा? 

अब मुख्यमंत्रीजी से बची है आशा

अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा में डॉ जेपीएस चौहान के अनुसार हमने राजधानी भोपाल में सत्ता के लगभग सभी गलियारों तक अपनी बात पहुचाने की कोशिश की है। इसमें हम काफी हद तक सफल भी हुए। अब आशा केवल मुख्यमंत्री जी से लगा रखी है कि वे हमारे मामले में संज्ञान लेंगे। अतिथिविद्वानों का प्रतिनिधिमंडल अब तक मुख्यमंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री, विधायक आरिफ मसूद, सिद्धार्थ कुशवाहा, कुणाल चौधरी एवं प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा से अलग अलग रूप से कई बार मिल चुका है लेकिन परिणाम अब भी सिफर ही है। सभी ने केवल आश्वासन ही दिया, लिखित आदेश की अब भी प्रतीक्षा है। 

आंदोलन सरकार के नही बल्कि शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ

मोर्चा के डॉ आशीष पांडेय का कहना है कि अतिथिविद्वानों का वर्तमान समय मे चल रहा आंदोलन किसी भी स्तर पर सरकार के खिलाफ नही है बल्कि यह तो लगभग 2 दशक पुरानी शोषणकारी अतिथिविद्वान व्यवस्था के खिलाफ है। हमारी मंशा है कि सरकार इस शोषणकारी व्यवस्था को समाप्त करके इसके स्थान पर जो हमसे नियमितीकरण का वादा किया था उसको अमलीजामा पहनाते हुए कोई अच्छी नीति हम अतिथिविद्वानों के लिये बनाये जिससे हम भी अपने अनिश्चित भविष्य की चिंता से दूर होकर खुले मन से उच्च शिक्षा विभाग की सेवा निरंतर करते रहे। और इसी पावन उद्देश्य को पाने हमने शांतिपूर्ण तरीके से इस आंदोलन को अब तक चलाया है। हमने केवल सरकार से अनुनय विनय करके अपनी बातें सरकार और ज़िम्मेदार पदाधिकारियों के समक्ष रखी है। अब सरकार की बारी है कि वो हमारे मामले में संवेदनशीलता दिखाते हुए अविलंब अपना वादा निभाये।

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