नागरिकता कानून में क्या संशोधन हुआ, विरोध क्यों हो रहा है, सिर्फ 1 मिनट में समझिए | GK IN HINDI

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। भारत का नागरिकता कानून (संशोधन 2019) अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। रविवार की रात देश भर में जो कुछ हुआ वह आने वाले कई दिनों तक अपना असर दिखाता रहेगा। दिल्ली में सुलगी आग देखते ही देखते पूरे देश में फैल गई। कई बड़े शहरों में रात 1:00 बजे और उसके बाद भी विरोध प्रदर्शन हुए। प्रश्न यह है कि जब लोकसभा में और राज्यसभा में नागरिकता कानून में संशोधन का विधेयक पूर्ण बहुमत से पास हो गया तो फिर अब इतना विरोध क्यों। क्या यह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है या इसके पीछे कोई गंभीर कारण भी है। क्या मुसलमानों को भड़का दिया गया है या फिर सरकार मुसलमानों को विश्वास जीतने में नाकाम रही। सिर्फ 1 मिनट में समझिए। संविधान की मूल भावना क्या है, नागरिकता कानून में क्या संशोधन हुआ, मुसलमान विरोध क्यों कर रहे हैं, असम में आग क्यों लगी। इन सभी सवालों के जवाब।

नागरिकता कानून का विरोध क्यों? 

नागरिकता कानून का विरोध करने वाले दो तरह के लोग हैं। 
नंबर वन- मुसलमान और मुसलमानों की राजनीति करने वाले लोग। 
नंबर दो- संविधान को समझने और उसमें विश्वास करने वाले लोग। 
संविधान की समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि यह कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन कर रहा है और भारत में संविधान का उल्लंघन करते हुए किसी भी तरह का कानून नहीं बनाया जा सकता। यदि लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद एक राय हो जाए तब भी नहीं। भारत में रह रहे मुसलमानों को इस कानून से कोई खतरा नहीं है लेकिन मुसलमानों की राजनीति करने वाले नेताओं ने संदेह जताया है कि जब एक कानून धर्म के आधार पर बनाया जा सकता है तो फिर यह सरकार धर्म के आधार पर कोई भी नया कानून बना देगी। बस इसी बात पर मुस्लिम समाज दहशत जदा है।

शरणार्थियों को भारत की नागरिकता कब दी जाती है, क्या कहता है नागरिकता कानून 1955

भारत का नागरिकता कानून 1955 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है लेकिन नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है। इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किए गए हैं। कानून पास होने के बाद 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता देना का प्रावधान है। जबकि मुस्लिमों को वापस जाना होगा।

क्या है नागरिकता कानून 1955

नागरिकता कानून 1955 भारतीय नागरिकता से जुड़ा एक विस्तृत कानून है। इस कानून में विस्तार से बताया गया है कि किसी शख्स को किन प्रावधानों के आधार पर भारतीय नागरिकता कैसे दी जा सकती है और भारतीय नागरिक होने के लिए क्या-क्या शर्ते हैं। इस कानून के मुताबिक किसी शख्स को चार तरह से भारत की नागरिकता दी जा सकती है। इस अधिनियम में अब तक पांच बार (1986, 1992, 2003, 2005 और 2015) बदलाव किया जा चुका है।

विरोध तो मुसलमान कर रहे हैं, असम के लोगों को क्या समस्या है

असम में इस बिल का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून असम समझौता 1985 का उल्लंघन करता है। इस समझौते के मुताबिक 24 मार्च 1971 से पहले ही दूसरे देशों से भारत आए लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है लेकिन नए कानून के मुताबिक ये सीमा बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दी गई है. असम समेत पूर्वोत्तर के लोगों का कहना है कि इससे बड़े पैमाने पर असम में दूसरे नस्ल के लोग आकर रहेंगे और असमिया पहचान प्रभावित होगी। Thank You 
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