क्या पुलिस आरक्षक का मानवाधिकार नहीं है, वो भी तृतीय श्रेणी कर्मचारी है | Khula Khat

Bhopal Samachar
मैं मध्य प्रदेश पुलिस में सिपाही/आरक्षक के पद पर पदस्थ हूं मेरा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री जी एवं गृह मंत्री जी को सुझाव है कि पुलिस कर्मी आरक्षक को अपने ग्रह जिले में पदस्थ किया जाए।

जिसके फायदे निम्नानुसार है।

1. पुलिसकर्मी को ज्यादा अवकाश  लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
2. ड्यूटी के बाद बचे हुए समय में अपने परिवार को समय दे पाएगा।
3. शासन द्वारा बनाए जा रहे शासकीय आवास का खर्च बचेगा। 
4. पुलिस कर्मी द्वारा मानसिक तनाव एवं आत्महत्या नहीं होगी।
5. भौगोलिक स्थिति से परिपूर्ण होने से अपराध पर अंकुश लगेगा। 
6. जिले में बदनामी के डर से ईमानदारी से नौकरी करेगा। 
7. बच्चौं की पढ़ाई  एवं माता पिता की देखरेख कर पाएगा। 
8. त्योहार के समय छुट्टी नहीं मिलने  के कारण कुछ समय के लिए घर पर हाजरी लगवाकर वापस ड्यूटी पर आ जाएगा।
9. रहने खाने पीने का खर्च कम होगा।
10. मानसिक एवं पारिवारीक तनाव कम होने के कारण स्वस्थ रहेगा और औसत आयु में वृद्धि होगी।

गृह जिला नहीं मिलने के कारण आरक्षक अपने माता-पिता से दूर रहता है एवं उसके माता पिता उसके साथ नहीं जाना चाहते हैं वे अपने पैतृक घर ही रहना चाहते जिस कारण से उसे दो घरों का खर्च चलाना पड़ता है एवं अनेक पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

पुलिस आरक्षक कोई अनुसंधान अधिकारी नहीं है वह तो पुलिस विभाग की नींव है एवं सबसे निचले स्तर का कर्मचारी है जो बिना किसी मूलभूत सुविधा के 12-16 घंटे प्रतिदिन ड्यूटी करता है। 

कृपया आसपास के राज्यो को भी देखें जहां आरक्षक अपने गृह जिले में ही नौकरी करते हैं एवं इसके साथ मध्य प्रदेश में तृतीय श्रेणी के सभी कर्मचारी अपने गृह जिले में नौकरी करते हैं सिवाय पुलिस को छोड़कर, क्या पुलिस का कोई परिवार नहीं है ? कहां गया मानव अधिकार आयोग ? दूसरे सभी विभागों की तुलना में पुलिस के साथ इतनी विसंगतिया क्यों ? 
सभी इस विषय में मौन धारण किए हुए है। 
पत्रलेखक ने अपने नाम गोपनीय रखने का आग्रह किया है। 
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