ग्वालियर। ग्वलियर के गौरव एवं विश्व प्रसिद्ध सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां ने 'सरोद घर' को बचाने की अपील की है। उन्होंने ग्वालियर के महाराजा एवं एकमात्र लोकप्रिय नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया से 5 करोड़ की मदद मांगी है। उन्होंने कहा कि आज सरोद घर को मेंटेन करना हमारे लिए मुश्किल है। हमें इसके लिए 5 करोड़ रुपए की जरूरत है।
पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खां ने कहा- मैं अपील करना चाहता हूं कि ग्वालियर के इंडस्ट्रियलिस्ट, सिंधिया परिवार, या मप्र की सरकार हो, या सीएम कमलनाथजी या कोई 5 लोग मिलकर यह राशि दिलवा दें। ताकि, सरोद घर का जो भी काम रिपेयर का शुरू हुआ है, वो पूरी तरह से मुकम्मिल हो जाए। फिक्स्ड डिपोजिट के इंटरेस्ट से सरोद घर का फ्यूचर बना रहेगा।
यह फकीरों का टीला और संगीतज्ञों की यादगार है
उन्होंने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि ग्वालियर में मेरा जन्म हुआ। मेरा जन्म स्थान सरोद घर है। मेरे पिता उस्ताद हाफिज अली खां साहब का भी यहीं जन्म हुआ था। सरोद घर में उनकी प्रतिमा है। यह फकीरों का टीला और संगीतज्ञों की यादगार है। यहीं मेरा बचपन बीता। एजुकेशन का मतलब हमारे घर में संगीत था। मेरे पिताजी उस्ताद हाफिज अली खां, महाराजा सिंधिया के कोर्ट म्यूजिशियन थे। उन्हें हिंदुस्तान भर में लोग बुलाते थे। वो फकीरी मिजाज के इंसान थे। उनका कहना था कि एक जीवन में आप सब कुछ नहीं कर सकते। आप पीएचडी भी कर लें और अच्छा सरोद भी बजाने लगें, वो इस बात में विश्वास नहीं करते थे।
दिल्ली क्यों चले गए थे
1957 में हम लोग ग्वालियर से दिल्ली में आ गए, क्योंकि वहां म्यूजिक इंस्टीट्यूशंस भारतीय कला केंद्र खुला था। पिताजी ने वहां नौकरी कर ली लेकिन ग्वालियर से तो जन्म जन्मांतर का नाता है। मैंने माधवगंज मिडिल स्कूल और गोरखी स्कूल में पढ़ाई-लिखाई की। ग्वालियर में माधव म्यूजिक कॉलेज बना तो उस जमाने के महाराज ने पिताजी को कहा कि खां साहब आप कभी देख लिया करिए कि स्कूल कैसा चल रहा है, वहां से उन्हें 150 रुपए महीना मिलता था। देश भर से लोग उन्हें बुलाते थे।
12 साल की उम्र से शुरू हुई संगीत की यात्रा
संगीत की यात्रा 12 साल की उम्र से शुरू हो गई थी। मेरी लाइफ का पहला अवॉर्ड प्रयाग संगीत समिति से मिला। बाद में मुझे हिंदुस्तान, दुनिया के अवॉर्ड के साथ बहुत कुछ कृपा हुई। केरला में एक दफा बहुत ही विद्वान ज्योतिष मिला। उन्होंने मेरा हाथ देखकर कहा, जहां आपका जन्म हुआ है, वहां से आपको कुछ नहीं मिलेगा। मैंने कहा, मुझे तो वहीं से सब कुछ मिला है। जब से सरोद घर बना। पिताजी के नाम से अवॉर्ड देते हैं। मेरे इन्विटेशन पर सरोद घर में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, केआर नारायणन, अटल बिहारी वाजपेयी, प्रेसीडेंट डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और वाइस प्रेसीडेंट कृष्णकांत भी आए।
अर्जुन सिंह जी ने मदद की थी, सिंधिया परिवार से कभी हेल्प नहीं मांगी
जर्मनी में बहुत बड़े संगीतकार थे मिथोविन। उनका घर म्यूजियम के तौर पर प्रिजर्व करा गया है। मैं और मेरी वाइफ शुभलक्ष्मी जी काे वो घर देखने के बाद ही अपने हाउस को म्यूजियम में कन्वर्ट करने का ध्यान आया। उस जमाने में अर्जुन सिंह जी एमएचआरडी मिनिस्टर थे, उनसे फाइनेंशियल हेल्प मिली लेकिन हमने सिंधिया परिवार से कभी कोई फाइनेंशियल हेल्प मांगी नहीं।
कितने सम्मान मिले
उन्हें रोस्टम पुरस्कार, यूनेस्को पुरस्कार, कला रत्न पुरस्कार, पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और तानसेन सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. हाल ही में उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की 20 महान हस्तियों के जीवन और योगदान पर एक किताब 'मास्टर ऑन मास्टर्स' लिखी थी।