नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण के कानून को उचित ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एससी-एसटी समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण देना अनुचित नहीं है। संसाधन और शिक्षा में असमानता भरे समाज में अगर सरकार का लक्ष्य किसी परीक्षा में ‘सफल’ हुए ‘टैलेंटेड’ व्यक्ति की भर्ती होकर रह जाए, तो संविधान के लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सिर्फ किसी परीक्षा से सफलता और टैलेंट तय नहीं होते। परीक्षा के आधार पर बनी मेरिट के लोगों को ही सरकारी नौकरी में अहमियत देने से समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान का हमारे संविधान का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। जस्टिस यूयू ललित और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कर्नाटक आरक्षण कानून, 2018 की वैधता को सही करार देते हुए यह टिप्पणी की है। इस कानून के तहत राज्य में सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी समुदाय के लोगों को प्रमोशन में आरक्षण दिया जाना है। इसके खिलाफ कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं।
प्रशासन में समाज की विविधता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रशासन में समाज की विविधता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एससी-एसटी समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण देना अनुचित नहीं है। इससे प्रशासन की कुशलता पर कतई असर नहीं पड़ता। समाज का वह वर्ग, जो वर्षों से हाशिए पर रहा हो या असमानता का शिकार होता रहा हो, उसे आरक्षण देने से शासन में उनकी आवाज को पहचान मिलेगी। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 335, 16(4) और 46 का हवाला देते हुए कहा कि सरकारी नौकरियां देकर एससी-एसटी वर्ग के लोगों का उत्थान किया जा सकता है। संपूर्ण सरकार की परिकल्पना इससे ही पूरी हो सकती है।
मेरिट मतलब परीक्षा में मिले अंक ही नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेरिट की परिभाषा किसी परीक्षा में पाए अंकों में सीमित नहीं की जानी चाहिए। इसका आकलन ऐसे कार्यों से होना चाहिए जो हमारे समाज की जरूरत हैं और जिनसे समाज में समानता और लोक प्रशासन में विविधता लाई जा सके। संसाधन और शिक्षा में असमानता भरे समाज में अगर सरकार का लक्ष्य किसी परीक्षा में ‘सफल’ हुए ‘टैलेंटेड’ व्यक्ति की भर्ती होकर रह जाए, तो संविधान के लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएंगे। ऐसे में मेरिट प्रत्याशी वह नहीं जो सफल या टैलेंटेड है, बल्कि वह है जिसकी नियुक्ति से संविधान के लिए लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिले।
संविधान परिवर्तनकारी दस्तावेज
संविधान का परिवर्तनकारी दस्तावेज बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बनाने वालों ने इसे जाति आधारित सामंती समाज में बदलाव लाने वाले उपकरण के तौर पर देखा। वह समाज जिसमें हाशिए पर रहने वाले समुदायों के प्रति सदियों से शोषण और भेदभाव था। वहीं प्रशासकीय कुशलता पर कोर्ट ने कहा कि आलोचक आरक्षण या सकारात्मक विभेद को सरकारी कार्यकुशलता के लिए नुकसानदेह बताते हैं। वे मेरिट के आधार पर चलने वाली व्यवस्था चाहते हैं लेकिन यह मान लेना कि एससी और एसटी वर्ग से रोस्टर के तहत प्रमोट होकर आए कर्मचारी कार्यकुशल नहीं होंगे, एक गहरा बैठा मानसिक पूर्वाग्रह है। जब समाज के विविध तबके सरकार और प्रशासन का हिस्सा बनें, उसे प्रशासकीय कुशलता माना जाना चाहिए।
अमर्त्य सेन के आलेख का दिया हवाला
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के एक आलेख का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया कि अगर यह माना जाए कि जो लोग कट ऑफ मार्क्स से अधिक अंक लेते हैं, वही मेधावी हैं, बाकी नहीं, तो यह विकृत सोच है। अगर विविधता और अनेकता को तरजीह नहीं दी गई तो हमारा समाज असमानता के चुंगल से नहीं निकल पाएगा। हमारा मानदंड ही हमारे परिणाम को परिभाषित करता है। अगर हमारी कुशलता का मानदंड बुनियादी तौर पर समान पहुंच पर आधारित होगा तो उसका परिणाम बेहतर होगा।