भैयाजी जोशी: मोदी विरोध की आंच में मोदी के लिए चाय बनाने की रणनीति | NATIONAL NEWS

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) की ओर से धर्मसभा का आयोजन किया गया। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना 'सरकार' को जमकर कोसा गया। उलाहना दी गई, धमकी दी गई, निंदा की गई। ये वही भीड़ है जिसने 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया था। इस भीड़ में आरएसएस के महासचिव भैयाजी जोशी भी थे। वो बड़ी ही चतुराई से मोदी विरोध की आंच में मोदी​ के लिए चाय बनाने का उपक्रम करते नजर आए। 

अब यह प्रमाणित करने की जरूरत नहीं कि नरेंद्र मोदी आरएसएस की योजना से भारत के प्रधानमंत्री बने हैं। संघ के हजारों कार्यक्रमों में इस सरकार को 'स्वयंसेवक की सरकार' कहा गया है। भैयाजी जोशी और नरेंद्र मोदी के प्रेम को कौन नहीं जानता। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि भाजपा मोदी के मिशन 2019 के लिए काम कर रही है परंतु भैयाजी जोशी ने मोदी के लिए मिशन 2025 तक की प्लानिंग कर रखी है। पिछली बार भैयाजी जोशी का सरकार्यवाह बनना इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त था कि संघ अब नरेंद्र मोदी के अनुसार काम करेगा। 

हिंदुओं में मोदी विरोध को मोदी के लिए फायदेमंद बनाने की रणनीति
दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित विराट धर्मसभा की में बड़ी संख्या में साधू-संत जुटे। राम मंदिर के मामले में सबने मोदी सरकार को निशाने पर लिया। सरकार्यवाह भैयाजी जोशी भी यहां उपस्थित हुए और ना केवल सुर में सुर मिलाया बल्कि आवाज बुलंद भी की। भैयाजी जोशी यह जताने में सफल रहे कि आरएसएस उन सभी लोगों के साथ है जो राममंदिर का निर्माण चाहते हैं। अब यह आसान हो जाएगा कि 2019 से पहले राम भक्तों की भीड़ को कभी भी अपने तरीके से मोड़ा जा सके। 

इससे मोदी को क्या फायदा होगा
सरकार पर अध्यादेश का दवाब बनाकर आरएसएस रामभक्त हिंदुओं को संगठित कर रहा है। लक्षित संख्या प्राप्त हो जाने के बाद सरकार अध्यादेश ले आएगी। स्वभाविक है इसका सदन में भारी विरोध होगा। बस यही तो चाहिए। कांग्रेस और दूसरे दलों को राम विरोधी बताकर इसी आंच में 2019 के चावल पका लिए जाएंगे। 

अध्यादेश में बुराई क्या है, वो तो लाना चाहिए
राम मंदिर इस देश में हिंदुओं की आस्था का विषय है। यदि एक बड़ी संख्या की आस्थाओं के लिए सरकार को अध्यादेश लाना पड़ता है तो इसमें गलत क्या है। एससी एसटी एक्ट मामले में भी तो लाया गया है। यह बात सही है परंतु तब जबकि यह बात 2014 या 2015 में हो रही होती। निश्चित रूप से इसे रामभक्ति की कहा जाता लेकिन अध्यादेश की उठापटक 2018 में करना राजनीति है। चुनाव नजदीक आते ही मुद्दों को गरम करना राजनीति है। भगवान श्रीराम अब मुद्दा नहीं हो सकते और सब जानते हैं कि लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फैसले की प्रक्रिया शुरू कर ही देगा। अयोध्या में राम मंदिर ही बनेगा, यह हाईकोर्ट में ही सुनिश्चित हो गया है। बस एक औपचारिकता शेष है। 
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