नवरात्र‍ि के चौथे दिन होगी मां कुष्‍मांडा देवी की पूजा और अर्चना, पढ़िए पूजन विधि एवं महत्व | RELIGIOUS

नवरात्र‍ि के चौथे दिन आरोग्य की देवी मां कुष्‍मांडा देवी की पूजा और अर्चना की जाती है। नवरात्र‍ि के दौरान हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र‍ि में इस बार पहले दिन मां शैलपुत्री और ब्रह्मचारिणी मां की पूजा की गई और दूसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा हुई। इस साल नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप कुष्मांडा की पूजा होगी। 

पूजन विधि एवं महत्व

12 अक्टूबर शुक्रवार को माता कुष्मांडा की पूजा होगी। मां दुर्गा के इस रूप को सृष्‍ट‍ि की आदि स्‍वरूपा और आदि शक्‍त‍ि कहते हैं। मां की आठ भुजाएं हैं, इसलिए उन्‍हें अष्‍टभुजा भी कहते हैं। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इन्‍हें सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। इनके सात हाथों में कमण्‍डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्‍प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा और आठवें हाथ में जप माला है। मां कुष्‍मांडा का वाहन सिंह है। आयु, यश, बल और आरोग्य मिलता है। 

मां कुष्‍मांडा की पूजा करने से मन का डर और भय दूर होता है और जीवन में सफलता प्राप्‍त होती है। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। 

सुबह स्‍नान कर पूजा स्‍थान पर बैठें। हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करें। इसके पश्‍चात ‘सुरासम्‍पूर्णकलश रूधिराप्‍लुतमेव च. दधाना हस्‍तपद्माभ्‍यां कूष्‍माण्‍डा शुभदास्‍तु मे…’ मंत्र का जाप करें। ध्‍यान रहे कि मां की पूजा अकेले ना करें। मां की पूजा के बाद भगवान शंकर की पूजा करना ना भूलें। इसके बाद भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की एक साथ पूजा करें। मां कुष्‍मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। मां को भोग लगाने के बाद प्रसाद किसी ब्राहृमण को दान कर दें। इससे बुद्ध‍ि का विकास होता है और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है। 

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