अध्यापक: इस बार दूल्हा विदाई से पहले भाग गया | ADHYAPAK SAMACHAR

Bhopal Samachar
उपदेश अवस्थी। मध्यप्रदेश के अध्यापक एक बार फिर साजिश का शिकार हो गए। आप इसे 'मुरलीधर रिटर्न' या '2014 रिटर्न' कह सकते हैं परंतु मुझे लगता है कि यह उससे कुछ ज्यादा है। पिछली बार दूल्हा मेंहदी लगाए बैठी दुल्हन को छोड़कर भाग गया था लेकिन इस बार दूल्हे ने घोड़ी चढ़ी, बारात निकाली और 7 फेरे भी लिए। बस विदाई से पहले भाग गया। रात 10 बजे सपने कुछ इस कदर बिखरे कि....। 

क्या हुआ था 2014 में
यूं तो यह कहानी सबको याद है परंतु फिर भी दोहरा लेते हैं। तो बात 2014 की है। प्रदेश भर के अध्यापक, संविदा शिक्षक और स्कूलों में पढ़ाने वाले नियमित शिक्षकों को छोड़कर सभी प्रकार के कर्मचारी भोपाल में डटे थे। शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग को लेकर हड़ताल जारी थी। पूरे प्रदेश में माहौल बना हुआ था। लोगों का समर्थन भी मिल रहा ​था। आंदोलन का नेतृत्व मुरलीधर पाटीदार कर रहे थे। सरकार दवाब में थी। बस फैसला होने ही वाला था कि अचानक आंदोलन बिखरता चला गया। कुछ समय बाद आंदोलन के नेता मुरलीधर पाटीदार ने भाजपा ज्वाइन की और भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बन गए। 

अब 2018 में क्या हुआ
मुरलीधर के विश्वासघात से एक नए संगठन का जन्म हुआ। नाम रखा गया 'आजाद अध्यापक संघ'। फिर एक बड़ा आंदोलन हुआ। पूरे प्रदेश में अध्यापकों की आवाज गूंजी और उसके बाद फिर कभी कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ। हां, कई बार आंदोलन के ऐलान जरूर हुए। अध्यापकों की रगों में गुटबाजी कुछ इस तरह दौड़ा दी गई जैसे अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ने रीवा सतना के ब्राह्मणों में फैलाई थी। नेताओं की संख्या बढ़ गई लेकिन अध्यापकों का नेतृत्व किसी ने नहीं किया। अध्यापकों में फिर भी गुस्सा था। सरकार को इसका पता था। इसलिए कई बार घोषणाएं हुईं। कभी अस्पताल से तो कभी घर के बरामदे से। फिर एक लड़की ने हिम्मत जुटाई। वो घर से निकली। अध्यापकों से मिली। सरकार को लगा फालतू की नेतागिरी है लेकिन उसने सचमुच मुंडन करा लिया। शिल्पी शिवान के मुंडन ने एक बार फिर प्रदेश सरकार को हिलाकर रख दिया परंतु शिल्पी का आक्रोश मुंडन के साथ सफाचट हो गया। उन्होंने आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया। सरकार दवाब में थी परंतु इसलिए संविलियन का ऐलान तो हुआ लेकिन एक साजिश भी रची गई। 10 अक्टूबर को इस साजिश का खुलासा हो गया। अध्यापक अब एक ऐसी दुल्हन है जो विवाहित तो हो गए पर विदाई नहीं हो पाई। 
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