संदीप विश्वकर्मा/गुनौर। पन्ना जिले की एकमात्र अनुसूचित जाति बहुमूल्य विधानसभा सुरक्षित सीट जिसे 2008 में परिसीमन के बाद अमानगंज का नाम बदलकर गुनौर विधानसभा के नाम से जानी जाती है। 2008 के पूर्व सभी विधानसभा निर्वाचन अमानगंज विधानसभा के नाम पर होते थे। गुनौर विधानसभा की विशेषता रही है कि एक अपवाद स्वरूप गोरेलाल अहिरवार एवं बसपा के जीवन लाल सिद्धार्थ का नाम छोड़ दिया जाए तो किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी ने आज तक लगातार अपना दूसरी बार प्रत्याशी रिपीट नहीं किया।
1985 से 2013 तक के विधानसभा निर्वाचन में कांग्रेस ने सिर्फ एक बार ही 1993 में विजय हासिल की और फुंदर चौधरी विधायक बने थे। इसके बाद कांग्रेस 1998 से लगातार 2008 तक के विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर भी नहीं रही। बसपा दूसरा स्थान पाकर मजबूत बनकर उभरी वही तत्कालीन 2013 के चुनाव में कांग्रेस के शिवदयाल बागरी ने भाजपा को कड़ी टक्कर देते हुए दूसरे स्थान पर रही एवं कांग्रेस की लाज बचाई इस प्रकार गुनौर विधानसभा में भाजपा बसपा और कांग्रेस का मिलाजुला प्रभावी क्षेत्र है। बसपा प्रत्याशी सावधानी बरतती आ रही है। तो वहीं भाजपा पार्टी के नाम पर हर बार विजय हासिल करती आ रही है 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रभावशाली पार्टी के रूप में उभरी भाजपा को कांटे की टक्कर देते हुए नाम मात्र के वोटों से हार का सामना करना पड़ा।
कहा जाता है कि अनुसूचित जाति बहुमूल्य विधानसभा गुनौर की जीत और हार का फैसला 50 प्रतिशत प्रत्याशी खुद तय करता है। यदि कांग्रेस ने टिकट वितरण में जरा सी भी असावधानी बरती तो कांग्रेस को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ सकता है। इस विधानसभा में करीब 2 लाख मतदाता है जिनमें लगभग डेढ़ लाख मतदाता मतदान करता है। तो वहीं भाजपा भी प्रत्याशी चयन को लेकर असमंजस में है। इस बार गुनौर विधानसभा का चुनाव अगर कहा जाए तो 50 प्रतिशत पार्टी एवं 50 प्रतिशत वोट चेहरे पर निर्भर करेगा। इसलिए दोनों ही पार्टियों में टिकट की उम्मीदवार चयन को लेकर भारी असमंजस में है।
आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने नहीं किया गुनौर का विकास
अनुसूचित जाति बहुमूल्य सुरक्षित विधानसभा गुनौर में अधिकांश विधायक रसूखदारो के कहीं ना कहीं कठपुतली बने रहते हैं । और उसकी आड़ में 20 वर्षों से भाजपा के विधायक अपने एवं अपने रसूखदार आकाओं का विकास करने तक सिमटे रहे यही कारण है कि गुनौर विधानसभा मुख्यालय में जहां पर एसडीएम तहसीलदार एवं जनपद पंचायत मुख्यालय जैसे कार्यालय संचालित होने का गौरव प्राप्त हो और बदकिस्मती ही ऐसी कि गुनौर विधानसभा मुख्यालय को आज भी ग्राम पंचायत के नाम से जाता है । 15 वर्षों तक सत्ता पक्ष में होते हुए भी गुनौर विधानसभा का विकास ना हो पाना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है लेकिन और आज भी गुनौर को नगर परिषद का दर्जा नहीं दिया जा सका भाजपाइयों ने अपनी लाज बचाने आनन-फानन में निर्वाचन आचार संहिता लगने के पूर्व अक्टूबर 2018 में गुनौर को नगर परिषद का दर्जा दिए जाने का आदेश मध्यप्रदेश शासन ने पारित किया । अब एकमात्र गुनौर को नगर परिषद का दर्जा देकर एक मात्र इसी के सहारे भाजपा परंपरागत सीट को बचा पाती है या नहीं यह तो प्रत्याशी एवं मतदाताओं के रुख के बाद चुनाव परिणाम किस समय स्पष्ट हो सकेगा जनाधार वाले नेताओं की कमी नहीं है लेकिन उनके पास पहुंच एवं पैसा नहीं होने से टिकट में पीछे पड़ते दिखाई दे रहे हैं और मलाई भोगी रसूखदार वे जनाधार विहीन नेता जो अपने राजनीतिक पहुंच एवं धनबल के सहारे टिकट हथियाने फिराक में है ।
2013 ऐसे रहे चुनाव के नतीजे
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में गुनौर विधानसभा सीट पर बीजेपी के महेंद्र सिंह और कांग्रेस के शिवदयाल के बीच टक्कर थी. लेकिन नतीजों में बीजेपी उम्मीदवार ने 1337 वोटों से जीत दर्ज की. कांग्रेस यहां छठे नंबर की पार्टी रही, जिसे महज एक फीसदी वोट हासिल हुए थे. बीएसपी और 3 निर्दलीय उम्मीदवारों ने इस चुनाव में कांग्रेस से ज्यादा वोट पाए थे.
2008 ऐसे रहे चुनाव के नतीजे -
साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के राजेश कुमार वर्मा को यहां से जीत मिली थी. इस चुनाव में उनका मुकाबला बीएसपी के जीवन लाल सिद्धार्थ से था. बीजेपी ने बीएसपी को करीब 5 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. इसके अलावा 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने 18, राष्ट्रीय समता दल ने 8 और समाजवादी पार्टी ने 1.6 फीसद वोटों पर कब्जा किया.
संभावित नामों में कौन-कौन है चर्चा में -
अनुसूचित जाति बहुमूल्य विधानसभा गुनौर में कांग्रेस को 2013 में विधानसभा चुनाव में बढ़ते वोट प्रतिशत के चलते कांग्रेस को जीत की मंजिल तक पहुंचाने के लिए प्रत्याशी चयन का काम करने में ही पसीना छूट रहा है क्योंकि प्रत्याशियों की लंबी फेहरिस्त के चलते जातीय समीकरण बैठाने एवं सपाक्स के उदय एवं दलित का नाराजगी को लेकर कांग्रेस क्या समीकरण बनाकर किस प्रत्याशी को सूरमा घोषित करेगी यह आने वाला वक्त ही तय करेगा वैसे कहा जाए तो शिवदयाल बागरी के अलावा पूर्व विधायक रहे फुंदर चौधरी एंव पूर्व सरपंच केसरी अहिरवार सहित एक शिक्षक का भी नाम राजनीतिक गलियारों में तेजी से चल रहा है तथा और भी कई नेता है जो कांग्रेस के प्रबल दावेदार हैं जिनमें शिवदयाल बागरी सब पर भारी पड़ रहे हैं 15 वर्षों तक बिना विकास के भाजपा को झेल रहे मतदाताओं का रुझान भाजपा की ओर नहीं दिख रहा क्षेत्र की जनता एवं कार्यकर्ता खासे नाराज हैं इस बार जब विधानसभा चुनाव का डंका बजने वाला है तो चुनावी समर की तैयारियों में पूर्व विधायक राजेश वर्मा वर्तमान विधायक महेंद्र सिंह बागरी चंदन सपेरा पूर्व विधायक गोरेलाल अहिरवार जैसे प्रत्याशियों का चेहरा वांछित सूची में है । जो टिकट की दौड़ में शामिल है तो वहीं बसपा भी 2018 के विधानसभा चुनाव में कयास लगाए जा रहे हैं कि देवीदीन आशु वर्मा इंजीनियर जीवनलाल सिद्धार्थ को अपना प्रत्याशी बना सकती है।
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