प्रमोशन में आरक्षण: फिर लामबंद हुए कर्मचारी संगठन, बड़े आंदोलन की तैयारी | EMPLOYEE NEWS

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण का मसला राज्य सरकारों पर छोड़कर अदालती विवाद भले ही खत्म कर दिया है लेकिन, प्रदेश में इस मसले पर कर्मचारियों के बीच बड़ी रार छिडऩा तय है। आरक्षित जातियों के कर्मचारी एक बार मायावती शासन में पदोन्नति में आरक्षण का सुख पा चुके हैैं और उनकी कोशिश राज्य सरकार पर इसके लिए दबाव बनाने की होगी। दूसरी ओर आरक्षण के विरोधी सर्वजन हिताय संरक्षण समिति से जुड़े लोग और सक्रिय हो उठे हैैं और व्यापक जनांदोलन घोषित करने जा रहे हैैं। इधर आरक्षण समर्थक भी परिक्रमा कर अपनी एकजुटता दिखाएंगे।   

कर्मचारी दो हिस्से में बंटे 
पदोन्नति में आरक्षण को लेकर राज्य के कर्मचारी खुले तौर पर दो हिस्से में बंटे हुए हैैं। इस विभाजन की शुुरुआत सितंबर 2007 में हुई थी जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने प्रदेश में परिणामी ज्येष्ठता और पदोन्नति में आरक्षण लागू किया था। उस वक्त सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की तीखी प्रतिक्रिया के बावजूद 25 हजार से अधिक कर्मचारी प्रमोट किए गए थे। सर्वजन हिताय संरक्षण समिति ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देकर स्टे जरूर हासिल किया लेकिन, सरकार ने अधिकांश विभागाध्यक्ष पदों पर एससी-एसटी को बैठा दिया था। हाईकोर्ट से यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सर्वोच्च अदालत ने 27 अप्रैल 2012 को सरकार के इस फैसले को पलट दिया था। इसके बाद अखिलेश शासन में कर्मचारियों को रिवर्ट करने की कार्रवाई शुरू हुई और 25 हजार से अधिक कर्मचारी रिवर्ट हुए थे। 

2002 में भी मायावती ने जारी किया था आदेश
बसपा प्रमुख मायावती ने 2002 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सरकारी सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण लागू किया था। तब भाजपा के साथ मिलकर उन्होंने सरकार बनाई थी। हालांकि इस फैसले को 2005 में सत्ता में आने पर मुलायम सिंह यादव ने वापस ले लिया था। 

आरक्षण फिर लागू हुआ तो जनांदोलन : शैलेंद्र दुबे
पदोन्नति में आरक्षण की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लडऩे वाली सर्वजन हिताय संरक्षण समिति ने चेतावनी दी है कि यदि फिर आरक्षण लागू हुआ तो जनांदोलन होगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद समिति ने आपात बैठक बुलाकर इस पर विचार किया। बाद में अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण अनिवार्य नहीं, अपितु ऐच्छिक है। इसी के तहत पूर्व में प्रदेश सरकार ने इसे लागू किया था जिसे 27 अप्रैल 2012 को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है। इसलिए दोबारा ऐसी कोशिश का प्रबल विरोध किया जाएगा। 

अब सरकार उठाए जरूरी कदम : अवधेश वर्मा
आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने भी बुधवार को बैठक बुलाकर फैसले की समीक्षा की। बैठक में खुशी जताई गई कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी और एसटी के पिछड़ेपन के आधार पर डेटा जुटाने को जरूरी नहीं माना है। समिति के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि अब उत्तर प्रदेश में रिवर्ट किए गए कार्मिकों की पूर्व पदों पर बहाली का रास्ता साफ हो गया है। सरकार को इस दिशा में अविलंब कदम उठना चाहिए। 
मध्यप्रदेश और देश की प्रमुख खबरें पढ़ने, MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !