SC-ST ACT में जिला न्यायालय संज्ञान नहीं ले सकता: HIGH COURT

Bhopal Samachar
जबलपुर। एससीएसटी एट्रोसिटी एक्ट के मामलों में प्रथम श्रेणी न्यायिक दण्डाधिकारी (जेएमएफसी) संज्ञान नहीं ले सकते। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस एसके पालो की एकलपीठ ने कहा कि यह अधिकार सिर्फ इस एक्ट के तहत गठित विशेष न्यायालयों को है। यह अहम निर्देश बालाघाट जिले के एक युवक की याचिका पर सुनवाई के बाद दिए गए।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता संजय अग्रवाल व स्वप्निल गांगुली ने कोर्ट को बताया कि बालाघाट निवासी मौसम हरिनखेड़े के खिलाफ बालाघाट के अनुसूचित जाति जनजाति थाने में 22 फरवरी 2015 को शारदा मेश्राम नामक महिला ने मारपीट व गालीगलौज करने का मामला दर्ज करने की शिकायत की थी लेकिन मामले की जांच के बाद अजाक थाना प्रभारी ने बालाघाट एसपी को रिपोर्ट भेजकर बताया कि मौसम हरिनखेड़े के खिलाफ लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं। थाने में शिकायत के आधार पर रिपोर्ट दर्ज न होने पर शारदा ने प्रथम श्रेणी न्यायिक दण्डाधिकारी बालाघाट की कोर्ट में परिवाद दायर किया। 

सुनवाई के बाद जेएमएफसी कोर्ट ने मौसम हरिनखेड़े के खिलाफ 323 व 341 का मामला दर्ज कर लिया लेकिन शारदा मेश्राम ने इस आदेश के खिलाफ एडीजे कोर्ट में अपील कर कहा कि आरोपी के खिलाफ एससीएसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज होना चाहिए। जिसके बाद एडीजे कोर्ट ने जेएमएफसी कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए आरोपित के खिलाफ एससीएसटी एट्रोसिटी एक्ट 1989 की धारा 3(1)(10) के तहत मामला दर्ज करने के निर्देश दिए। एडीजे कोर्ट के निर्देश पर आरोपित के खिलाफ जेएमएफसी ने इस अधिनियम के तहत प्रकरण दर्ज कर लिया। 

याचिकाकर्ता ने जेएमएफसी कोर्ट के इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने भी इस तर्क से सहमति जताई कि जेएमएफसी को यह अधिकार नहीं है। एससीएसटी एक्ट के मामले पर संज्ञान लेना अधिकार सिर्फ इस मामले के गठित विशेष न्यायालय को है। इसी के साथ याचिकाकर्ता पर बालाघाट अनुसूचित जाति, जनजाति थाने में एससीएसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज प्रकरण पर रोक लगा दी।
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