मप्र राज्य स्कूल शिक्षा सेवा-18 का ड्राफ्ट सार्वजनिक करे सरकार

डीके सिंगौर। अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश ने शिवराज सिंह सरकार से मांग की है कि अध्यापकों के संविलियन के लिए बनाए जा रहे मप्र राज्य स्कूल शिक्षा सेवा-18 का ड्राफ्ट तत्काल सार्वजनिक करेे, जिससे पौने तीन लाख अध्यापक में बनी भ्रम की स्थिति दूर हो सके तथा अधिकृत तौर पर जारी ड्राफ्ट को पढ़कर अपनी राय बनाकर सहमति एवं असहमति जाहिर कर सकें। सरकार ने 29 मई की कैबीनेट में मप्र राज्य स्कूल शिक्षा सेवा-18 के जिस मसौदे पर चर्चा  की है, उससे अध्यापकों में नाराजगी है और वह इसके खिलाफ आंदोलित है। 3 जून को जिलों में दिए गए ज्ञापन और 24 जून को भोपाल में हुई रैली अध्यापकों की नाराजगी का सबूत है। सरकार की ओर से अब तक गठित किए जाने वाले राज्य स्कूल शिक्षा सेवा-18 पर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है, जिस कारण उस पर सवाल उठ रहे हैं, अध्यापक  संदेह कर रहे हैं। अध्यापकों के बीच व्याप्त शंका के समाधान के लिए जरूरी है कि सरकार संविलियन के लिए बनाए जा रहे विभाग के बारे में विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करे।

अध्यापक संघर्ष समिति ने सरकार से कहा है कि पौने तीन लाख अध्यापकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार उन्हें कहां और किसके अधीन करने वाली है, यह जानकारी सिर्फ सरकार की ओर से स्कूल शिक्षा विभाग ही दे सकता है, जो उसने अब तक नहीं दी है। मप्र का अध्यापक सरकार से  जानना चाहता है कि राज्य शिक्षा सेवा-2012 एवं मध्यप्रदेश राज्य स्कूल शिक्षा सेवा-2018 में क्या अंतर है। पौने तीन लाख अध्यापकों के भविष्य एवं समाज के गरीब तबके से जुड़ी स्कूली शिक्षा में किए जाने वाले बदलाव के बारे में कोई भी फैसला चोरी छिपे नहीं लिया जाना चाहिए, इसके लिए समाज के जागरुक नागरिकों, स्कूली शिक्षकों एवं शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले जानकार लोगों को विश्वास में लेना जरूरी है, जो तभी संभव है, जब सरकार मप्र राज्य स्कूल शिक्षा सेवा-18 का पूरा ड्राफ्ट चर्चा के लिए जारी करे।

अध्यापक संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री के उस बयान पर सख्त एतराज जताया है जिसमें वे स्कूली शिक्षा को समाज और सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी बता रहे हैं। संघर्ष समिति का स्पष्ट मानना है कि समाज को शिक्षित करने की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ सरकार की है, जिससे वह पीछे नहीं हट सकती। स्कूली शिक्षा की जिम्मेदारी समाज पर डालकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में समाज को बीच में लाने का मतलब स्कूली शिक्षा को पूरी तरह निजी हाथों के लिए खोल देना है। राज्य शिक्षा सेवा-12, मप्र राज्य स्कूल शिक्षा सेवा-18 के गठन इसलिए किए जा रहे हैं जिससे सरकार स्कूली शिक्षा को निजी हाथों में सौंपकर खुद को इस जिम्मेदारी से मुक्त कर ले, इसीलिए ही मुख्यमंत्री आजकल स्कूली शिक्षा को समाज और सरकार दोनों की सामूहिक की जिम्मेदारी भी बताने लगे हैं। अध्यापक संघर्ष समिति  स्कूली शिक्षा में चोरी-छिपे किए जाने वाले हर तरह के बदलाव के खिलाफ है और उसका विरोध जारी रखेगी।

अध्यापक संघर्ष समिति का स्पष्ट मानना है कि अध्यापक आंदोलन अब वेतन भत्तों तक सीमित नहीं रहा है, अब यह आंदोलन स्कूलों को बचाने, गरीब के बच्चों को मिलने वाली सस्ती शिक्षा की रक्षा करने की तरफ बढ़ चुका है, इसीलिए आने वाले वक्त में अध्यापक, शिक्षक एवं समाज को मिलकर इस संघर्ष को लडऩा होगा, तभी सरकार को स्कूली शिक्षा में किए जाने वाले नए-नए प्रयोगों से रोका जा सकता है तथा वेतन विसंगति के शिकार स्कूली शिक्षकों के साथ न्याय हो सकता है।

"20 वर्षों की सेवा को पदोन्नति , क्रमोन्नति, ग्रेच्यूटी,  पेंशन आदि के लिये मान्य होनी चाहिये । शिक्षकों के समान समस्त भत्ते, सुविधाएं और सेवा शर्तें का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये । चाहे पंचायत का कर्मचारी मानें चाहे राज्य शासन का 7वें वेतनमान की पात्रता जनवरी 2016 से ही बनती है । अलग केडर के कारण जब शिक्षक संवर्ग का नाम नहीं दिया जा रहा है और नियुक्ति राज्य शिक्षा सेवा में शिक्षक संवर्ग के समान वेतनमान और सेवा शर्तों के साथ किया जा रहा है तो सरकार को सहायक शिक्षक(रा शि से), शिक्षक (रा शि से ) व व्याख्याता (रा शि से ) पदनाम देने में क्या आपत्ति है। "
डी के सिंगौर, मण्डला 
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