क्या 5 दिन में 750 करोड़ रुपए गिने जा सकते हैं: रवीश कुमार

पीएम नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसमंद साथी एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर आरोप लगा है कि वो जिस सहकारी बैंक में डायरेक्ट हैं उसमें नोटबंदी के शुरूआती 5 दिनों में 750 करोड़ रुपए जमा कराए गए। एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने इस मामले में अपनी ही तरीके से तहकीकात की। उन्होंने पता लगाने की कोशिश की कि क्या 5 दिनों में 750 करोड़ रुपए के नोटों की गिनती की जा सकती है जबकि सभी नोट 1000 और 500 की शक्ल में हों। रवीश कुमार की पड़ताल कहती है कि यह कतई संभव नहीं है। आइए पढ़ते हैं रवीश कुमार की छानबीन रिपोर्ट

अनुभवी बैंक कैशियरों से बात की
हमने बैंकों में काम करने वाले कुछ अनुभवी कैशियरों से बात की। विवाद का आधार या अंजाम जो भी हो, यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं है कि 750 करोड़ रुपये गिनने में कितना वक्त लग सकता है, कितनी मशीनें लगेंगी और कितने कैशियर लगेंगे? हम यहां आपको साफ-साफ बता देना चाहते हैं कि इस बारे में हमारी कोई विशेषज्ञता नहीं है। हम कैशियरों की बातचीत के आधार पर लिख रहे हैं। 

4 कैशियर 4 दिन में मशीन की मदद से सिर्फ 26 करोड़ रुपए गिन पाए थे
एक कैशियर ने बताया कि नोटबंदी के दौरान 11 से 13 नवंबर 2016 के बीच वे और उनके तीन साथी कैशियर सुबह आठ बजे से रात के 10 बजे तक नोट गिनते रहे तब भी चार दिनों में 26 करोड़ ही गिन पाए। जबकि वे खुद को नोट गिनने के मामले में काफी दक्ष मानते हैं। नाम न बताने की शर्त पर कैशियर ने कहा कि हमें सिर्फ नोट नहीं गिनने होते हैं, नोटों की गड्डी को एक तरफ से सजाना होता है, उसे उलट-पलटकर देखना होता है, फिर उपभोक्ता से बात करनी पड़ती है, फटे पुराने और असली-नकली चेक करने पड़ते हैं, गिनती सही हो इसकी तसल्ली के लिए दो-दो बार गिनते हैं। इसके बाद गिने गए नोट की फाइल में एंट्री होती है। इन सबमें एक उपभोक्ता के साथ दो से पांच मिनट और कई बार उससे भी ज़्यादा लग सकता है। 

मशीन की क्षमता क्या होती है
पर ध्यान रखना चाहिए कि नोट गिनने की मशीन सभी जगह नहीं होती है। आप इस मशीन को तीन से चार घंटे ही लगातार चला सकते हैं क्योंकि उसके बाद गरम हो जाती है। गरम होने के बाद गिनती कम होने लगती है। तब मशीन को कुछ देर के लिए आराम देना पड़ता है। बाकी समय को जोड़ लें तो आप सिर्फ नोट नहीं गिन रहे होते हैं, लंच भी करते हैं, चाय भी पीते हैं और शौचालय के लिए भी कुर्सी से उठते हैं।

देश के किसी भी सहकारी बैंक में यह गिनती नहीं हो सकती
रवीश लिखते हैं कि हमने इन कैशियरों से पूछा कि अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक के तीन ज़िलों में 190 ब्रांच हैं। क्या 190 ब्रांच में 750 करोड़ पुराने नोट गिनकर बदले जा सकते हैं या जमा हो सकते हैं? तो उन्होंने हमें एक हिसाब बताया। कहा कि 1000 के 40,000 पैकेट और 500 के 80,000 पैकेट मिलाकर 750 करोड़ होते हैं। इस तरह से सवा लाख पैकेट गिनने के लिए 500 से 800 कैशियरों और इतनी ही मशीनों की ज़रूरत पड़ेगी। किसी भी सहकारी बैंक के पास न तो इतने कैशियर होते हैं और न ही इतनी मशीनें और न ही उनका प्रशिक्षण ऐसा होता है क्योंकि सहकारी बैंकों में मुश्किल से रोज़ आठ-दस लाख ही जमा होते होंगे। कैशियरों ने कहा कि 190 ब्रांच के हिसाब से औसतन 4 करोड़ की राशि होती है जिसे गिनना नामुमकिन है। 

कोई गड़बड़ी नही हुई, हर खाते में औसत 46,795 रुपये ही जमा हुए हैं: नाबार्ड
कांग्रेस ने जांच की मांग की तो बीजेपी ने चुप्पी साध ली। वैसे बीजेपी के एक सांसद ने इन आरोपों को बेतुका कहा है। आरटीआई कार्यकर्ता ने भी आज कुछ नहीं बोला, जिससे पता चले कि उन्हें कहां और किस बात का शक है। नाबार्ड ने खंडन किया है कि कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। अहमदाबाद ज़िला सहकारी बैंक देश के श्रेष्ठ सहकारी बैंकों में अव्वल है। नोटबंदी के दौरान यहां के हरेक खातेदार के खाते में औसतन 46,795 रुपये ही जमा हुए है जो कि बहुत नहीं है।
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