ये हैं हाई रिटर्न वाली 6 इंवेस्टमेंट स्कीम

सुनील धवन। रिस्क और रिटर्न का आपस में सीधा संबंध है। Risk कम करने का मतलब होता है कि कम रिटर्न में संतोष करने के लिए भी तैयार रहना। अधिक रिटर्न पाने के लिए जरूरी होता है कि Fixed Income Products की बजाय मार्केट से जुड़े इन्वेस्टमेंट पैसा लगाया जाए। हाई रिटर्न की बात करें तो Equity में इसकी सबसे अधिक संभावना रहती है। अन्य एसेट्स क्लास के मुताबिक इक्विटीज से रिटर्न अधिक मिलता रहा है। हालांकि इसके अलावा Real Estate और Gold भी ऐसी चीज हैं, जहां पैसा लगाकर कम से कम समय में अधिक राशि हासिल की जा सकती है। 

1. Direct Equity


शेयर्स और स्टॉक्स में निवेश का अर्थ है कि आप इक्विटी एसेट्स क्लास से सीधे जुड़ रहे हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज या फिर नैशनल स्टॉक एक्सचेंज से जुड़े शेयरों में पैसा लगाने का मतलब सेकंडरी मार्केट से है। यदि आप इनमें इन्वेस्ट करना चाहते हैं तो आपको किसी ब्रोकरेज हाउस के साथ डिमैट अकाउंट खुलवाना होगा। यदि आप किसी बड़े रिस्क से बचना चाहते हैं तो यह जरूरी है कि स्टॉक्स में सीधे निवेश करने की बजाय अलग-अलग सेक्टर्स में पूंजी को देखते हुए पैसा लगाएं। फिलहाल कुछ सालों में सेंसेक्स में रिटर्न का औसत 1-3 और 5 साल के अनुसार क्रमश: 13, 8 और 12.5 पर्सेंट रहा है। 

रिस्क: इक्विटीज के साथ यह बात हमेशा से जुड़ी रही है कि बाजार की अस्थिरता के चलते नुकसान हो सकता है। यहां तक अपनी ही पूंजी का एक हिस्सा गंवाने का भी रिस्क रहता है। इसमें अच्छी बात यही है कि लंबे समय के लिए निवेश करने पर मिलने वाला रिटर्न महंगाई वगैरह सभी चीजों को जोड़ने के बाद भी अधिक रहने की संभावना रहती है। 

2. IPO


किसी भी कंपनी के शेयरों की एक्सचेंज में लिस्टिंग से पहले उन्हें इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग के जरिए जनता के समक्ष पेश किया जाता है। पब्लिक इशू का अर्थ एक कंपनी की ओर से निश्चित कीमत के साथ अपने शेयरों को जनता के समक्ष पेश करना है। एक बार ऐसा होने के बाद कंपनी अपने शेयर आवेदकों को निश्चित नियम और शर्तों के तहत देती है। 

रिस्क: आईपीओ के लिए अप्लाइ करने का मतलब अलॉटमेंट से नहीं होता। यह ध्यान रखना जरूरी है कि आईपीओ की तय कीमत उसकी न्यूनतम कीमत नहीं होती। यह बढ़ भी सकती है और लिस्टिंग डेट तक इसमें बड़ी गिरावट भी आ सकती है। 

3. इक्विटी फंड्स: Mid & Small cap Scheme


मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर कई तरह के इक्विटी फंड मिड कैप और स्मॉल कैप स्कीम्स के तहत उपलब्ध रहते हैं। इनमें अस्थिरता काफी रहती है, लेकिन इसके साथ ही ऊंचे रिटर्न की भी संभावना रहती है। सेबी के नए नियमों के मुताबिक मिड कैप में फुल मार्केट कैपिटलाइजेशन के तहत 101वें से लेकर 250वीं कंपनी तक में निवेश किया जा सकता है। जबकि स्मॉल कैप स्कीम्स में 251वीं कंपनी से लेकर अन्य कंपनियों में पैसा लगाया जा सकता है। स्कीम के कुल एसेट्स के 65 पर्सेंट के बराबर मिड और स्मॉल कैप कंपनियों में निवेश किया जा सकता है। 

रिस्क: इन दोनों ही स्कीम्स में हाई रिस्क होता है, लेकिन इसमें अधिक रिटर्न की क्षमता भी होती है। मिड कैप फंड में इन्वेस्ट करने से पहले यह याद रखें कि यह आपके पोर्टफोलियो का फाउंडेशन नहीं बनाता। इसे आपको अपने रिस्क प्रोफाइल के बारे में जानने के बाद ही शामिल करना चाहिए। 

4. Equity linked Saving Scheme


ईएलएसएस एक तरह का म्युचूअल फंड है, जो किसी भी अन्य इक्विटी म्युचूअल फंड की तरह है। इक्विटी या इक्विटी से संबंधित उपकरणों में न्यूनतम निवेश एसेट्स से कम से कम 80 फीसदी तक होना चाहिए। इसका लाभ यह है कि इसमें आपको टैक्स का लाभ भी मिलता है। हालांकि इसमें 3 साल तक का लॉक-इन पीरियड भी होता है। ईएलएसएस स्कीम भी स्मॉल और मिड कैप हो सकती है। फंड मैनेजर्स को इसमें यह फायदा होता है कि वे लॉक इन पीरियड का इस्तेमाल कर राशि को अलग-अलग सेक्टर्स में लगा सकते हैं। यदि आपका उद्देश्य लंबे समय का निवेश करने के साथ ही टैक्स की भी बचत करना है तो इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकती है। 

रिस्क: लॉक इन पीरियड खत्म होने के बाद इससे मिलने वाले रिटर्न बेंचमार्क से कम भी रह सकता है। ऐसे में पीरियड खत्म होने के बाद उसके खराब परफॉर्मेंस का आकलन करें और फिर फैसला लें कि बने रहना है या फिर एग्जिट करना है। 

5. Real Estate Investment


अन्य इन्वेस्टमेंट्स के मुकाबले रियल एस्टेट की कीमतों में अस्थिरता बहुत ज्यादा नहीं रहती। सबसे अच्छी बात यह है कि महंगाई के मुकाबले इसकी कीमत अच्छी खासी बढ़ जाती है यानी इसमें निवेश घाटे का सौदा नहीं हो सकता। 

रिस्क: रियल एस्टेट में एक समस्या कई बार यह आ जाती है कि यहां लंबे वक्त के लिए कीमतों में ठहराव भी आ जाता है। इसके बाद किसी प्रॉजेक्ट के चलते रेट अचानक बढ़ते हैं और फिर स्थिरता की स्थिति पैदा हो जाती है। हालांकि इसमें निवेश काफी हद तक सुरक्षित रहता है। लेकिन इसमें लिक्विडिटी कठिन होती है और निवेश के लिए अधिक पूंजी की जरूरत होती है। 

6. Peer to Peer Platforms


पीयर-टु-पीयर लेंडिग हाल में एक नए विकल्प के तौर पर उभरा है। इसके तहत क्राउड फंडिंग के जरिए लोन हासिल किया जाता है। इसमें पीयर-टु-पीयर प्लैटफॉर्म या फिर म्युचूअल अग्रीमेंट के तहत इंटरेस्ट रेट तय किया जाता है। 

रिस्क: यह अनसिक्योर्ड लोन होता है, जिसमें फेस-टु-फेस इंटरेक्शन नहीं होता। ऐसे में निवेशक को इस बात को लेकर सतर्क रहने की जरूरत होती है। इसकी वजह यह है कि कर्जधारक के डिफॉल्टर होने पर पैसा वसूलना मुश्किल होता है। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !