भारत के इस इलाके में ड्राइविंग नहीं बंदूक के लाइसेंस ले रहीं हैं महिलाएं

भोपाल। महिलाएं हर क्षेत्र में बराबरी कर रहीं हैं। बात यदि ड्राइविंग लाइसेंस की हो तो अब आधी आबादी के पास आधे ड्राइविंग लाइसेंस भी हैं। महिलाएं ड्राइविंग लाइसेंस के प्रति काफी सजग होतीं हैं और समय रहते बनवा लेतीं हैं परंतु भारत का एक इलाका ऐसा भी है जहां महिलाएं ड्राइविंग लाइसेंस से से ज्यादा बंदूक के लाइसेंस बनवातीं हैं। वो बिना ड्राइविंग लाइसेंस वाहन चलातीं हैं लेकिन आप उन्हे लापरवाह नहीं कह सकते, क्योंकि उनके पास हथियार के लाइसेंस होते हैं। कहा जाता है कि चंबल में एक भी घर ऐसा नहीं है जिसमें हथियार ना हों। 

यह इलाका है मध्यप्रदेश का चंबल संभाग। मुरैना जिले में जिले में शस्त्र लाइसेंस धारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं का प्रतिशत, ड्राइविंग लाइसेंसधारी पुरुषों की तुलना में ठीक दोगुना है। राज्य शासन की निःशुल्क पिंक कार्ड योजना भी महिलाओं को लाइसेंस बनवाने के लिए आकर्षित नहीं कर पाई है। जनगणना 2011 के मुताबिक जिले में 10 लाख 68 हजार 417 पुरुष हैं और 8 लाख 97 हजार 553 महिलाएं हैं। बदलते जमाने के साथ महिलाएं घरों से निकल रही हैं और आगे बढ़ रही हैं, लेकिन ड्राइविंग लाइसेंस के मामले में मुरैना की महिलाओं की स्थिति अभी भी बेहद खराब है।

दोपहिया वाहनों और चार पहिया वाहनों का उपयोग करने के बादे भी ज्यादातर महिलाएं ड्राइविंग लाइसेंस बनवाती ही नहीं हैं। इसके विपरीत हथियार के लाइसेंस लेने के मामले में मुरैना की महिलाएं काफी आगे हैं। उदाहरण के लिए मुरैना जिले में कुल 1 लाख 22 हजार पुरुषों के पास ड्राइविंग लाइसेंस हैं। इनकी तुलना में ड्राइविंग लाइसेंसधारी महिलाएं महज 2 हजार 985 हैं। जो पुरुषों की संख्या की तुलना में महज 2.4 प्रतिशत है।

इसके ठीक विपरीत जिले में शस्त्र लाइसेंसधारी पुरुषों की संख्या 27 हजार है। जबकि शस्त्र लाइसेंसधारी महिलाएं 1350 है। यानी कुल शस्त्र लाइसेंसधारी पुरुषों की तुलना में शस्त्र लाइसेंस धारी महिलाओं की संख्या 5 प्रतिशत है। यानी शस्त्र लाइसेंसधारी महिलाओं का प्रतिशत ड्राइविंग लाइसेंस धारी महिलाओं से ठीक दोगुना है।

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