सुसाइड नोट में नाम होने से किसी को आरोपी नहीं बना सकते: HIGH COURT

इंदौर। हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने खुदकुशी के लिए प्रेरित करने के मामले में आरोपी बने व्यक्ति की पिटिशन पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत में पेश किए चालान को निरस्त करते हुए आदेश दिया है कि सुसाइड नोट में केवल नाम भर लिख देने से किसी को आरोपी नहीं मान सकते। जब तक यह साबित नहीं हो कि संबंधित व्यक्ति ने सुसाइड करने वाले को इसके लिए प्रताड़ित किया, तब तक उसे आरोपी नहीं बनाया जा सकता।

सीनियर अफसर के खिलाफ ई-मेल कर की थी खुदकुशी
डीसीएम श्रीराम नामक कंपनी के कर्मचारी सुमित व्यास ने पिछले साल सितंबर में खुदकुशी कर ली थी। उसने खुदकुशी से पहले कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी और पुलिस को ई-मेल कर कहा था कि वह कंपनी के जनरल मैनेजर अभय कुमार कटारे की प्रताड़ना से तंग आकर खुदकुशी कर रहा है। ईमेल मिलते ही कंपनी प्रबंधन ने पुलिस को सूचित किया और सुनील को अस्पताल पहुंचाया। तीन दिन भर्ती रहने के बाद सुनील ने दम तोड़ दिया।

पुलिस ने ईमेल के आधार पर अभय कुमार के खिलाफ खुदकुशी के लिए प्रेरित करने के आरोप में धारा 306 में केस दर्ज किया और विवेचना के बाद चालान पेश कर दिया। अभय ने अधिवक्ता राघवेंद्रसिंह रघुवंशी के जरिए हाई कोर्ट में चालान पेश करने को चुनौती दी।

पुलिस चालान में भी साबित नहीं हुई आरोपी की भूमिका
हाई कोर्ट में दलील रखी गई कि सुनील 2011 से कंपनी में कार्यरत था। वह कई बार इस्तीफा देकर वापस ले चुका था। उसकी इस हरकत पर अभय ने शीर्ष अधिकारियों को ई-मेल किया था कि सुनील और उसके जैसे कर्मचारियों का ट्रांसफर कर दिया जाए। इस बीच सुनील ने सितंबर में इस्तीफा दे दिया, जिसे स्वीकार कर लिया था। नौकरी छोड़ने के पांच दिन बाद उसने खुदकुशी कर ली, लेकिन इस्तीफा देने से लेकर खुदकुशी करने के बीच सुनील और अभय की कोई बात ही नहीं हुई थी। पुलिस ने केवल ई-मेल में नाम के आधार पर केस दर्ज कर लिया। पुलिस चालान में भी ऐसा कहीं साबित नहीं हो रहा जिसमें अभय की सीधी-सीधी भूमिका है। हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। मंगलवार को फैसला सुनाते हुए निचली अदालत में पेश किए चालान को निरस्त कर दिया।

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