रायपुर। किस्टाराम और पलोड़ी के बीच हुई नक्सली मुठभेड़ में हमारे 09 जवान मारे गए और 25 से ज्यादा घायल हो गए। अब इस घटना के पीछे चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। चर्चा है कि मुठभेड़ के दौरान कोबरा जवानों ने UBGL से 3 बार ग्रेनेड दागे परंतु एक भी बम नहीं फटा। यदि ये तीनों बफ फट जाते तो किस्टाराम में 100 नक्सलियों की लाशें पड़ीं होतीं और यह नक्सलियों के खिलाफ चलने वाले अभियान की एतिहासिक सफलता होती। इस मामले का खुलासा इनाडु इंडिया सहित छत्तीसगढ़ की स्थानीय मीडिया ने किया है। अब यह जांच का विषय है कि ग्रेनेड ना फटने के पीछे क्या कारण रहे।
गौरतलब है कि मंगलवार को सुबह सर्चिंग अभियान पर निकली कोबरा बटालियन को नक्सलियों ने घेर लिया था, लेकिन कोबरा की टीम माओवादियों पर इस कदर भारी पड़ी कि उन्हें भागना पड़ा। सूत्रों के मुताबिक कोबरा की टीम ने नक्सलियों पर UBGL से तीन फायर किए, लेकिन UBGL के तीनों फायर मिस हो गए। एक भी गोला नहीं फटा। यदि तीनों गोले फट जाते तो तकरीबन 100 की तादाद में मौजूद नक्सली ढेर हो सकते थे और फिर हमारे जवान सुरक्षित बच सकते थे।
इसका पूरा नाम अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर है। यह 25 सेमी लंबा लांचर है, जो एके 47 और इंसास राइफल की बैरल के नीचे लगाया जाता है। इससे एक मिनट में 5 से 7 गोले 400 मीटर की दूरी तक निशाना साधकर दागे जा सकते हैं। इसका वजन करीब डेढ़ किलो, नली का व्यास 4X4.6 सेमी और लंबाई 25 सेमी होती है।
कितना घातक है यह हथियार
यूबीजीएल से 400 मीटर तक रात में भी निशाना साधकर गोला दागा जा सकता है।
इसका एक ग्रेनेड टीन शेड या टेंट के एक बैरक और 4-6 ग्रेनेड थाना-चौकियों में तबाही मचाने के लिए काफी है।
इससे मोर्चे, ट्रेंच, जंगलों में आड़ लिए या पहाडिय़ों पर मौजूद लोगों को भी निशाना बनाया जा सकता है।
इसका गोला जहां गिरता है, वहां 8 मीटर तक के दायरे को तहस-नहस कर देता है।
नक्सली घबराते हैं इससे
यूबीजीएल का इस्तेमाल सेना में ही होता रहा है। मारक क्षमता के चलते ही इसे 2010 में नक्सली मोर्चे पर तैनात सुरक्षा बलों को मुहैया करवाया गया। 14 मार्च 2011 को चिंतलनार इलाके में पुलिस ने पहली दफे इसका इस्तेमाल किया और एंबुश लगाकर बैठे नक्सलियों के खेमे में खलबली मचा दी थी। इसकी मारक क्षमता को देख नक्सली भी घबरा गए।