
इस दौरान याचिकाकर्ता अभिषेक तेकाम व अमर सिंह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्शमुनि त्रिवेदी, एसके राठौर, सत्येन्द्र ज्योतिषी और दिनेश राजपूत ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि डीएलएड का दो वर्षीय पाठ्यक्रम भारत सरकार द्वारा संचालित किया जा रहा है। इसके बावजूद राज्य शासन ने डीएलएड कोर्स करने वाले अतिथि शिक्षकों को अपात्र घोषित कर दिया। जिससे व्यथित होकर प्रभावितों ने हाईकोर्ट की शरण ले ली।
ऐसा इसलिए भी क्योंकि जिस तरह शसकीय शालाओं के शिक्षक सेवाएं देते हैं, वैसे ही अतिथि शिक्षक भी सेवा देते हैं। कार्य में विभेद न होने के बावजूद सरकार का दोहरा रवैया समझ के परे है। हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर गौर करने के बाद अंतरिम राहत के साथ ही यह टिप्पणी भी की कि या तो डीएलएड कोर्स बंद कर दिया जाए या फिर अतिथि शिक्षकों को पात्र माना जाए।