भारत में 2600 साल पहले ऋषि चार्वाक मनाते थे वेलेंटाइन डे जैसा त्यौहार | VALENTINE DAY SPECIAL

वेलेंटाइन डे का भारत में विरोध होता है, भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया जाता है. ऐसा ही एक पर्व भारतीय ऋषि चार्वाक ने 600 साल ईसा पूर्व आयोजित करते थे. वैसे तब भी इसका काफी विरोध होता था. राजदरबार में काफी शिकायतें होती थीं. धर्मशास्त्रियों ने इसे रोकने की तमाम कोशिश करते थे लेकिन चार्वाक को कोई फर्क नहीं पड़ता था. प्यार के इस उत्सव को वो और उनके अनुयायी चंद्रोत्सव कहते थे. हालांकि चार्वाक के ग्रंथों और दस्तावेजों को समूलचूल नष्ट कर दिया गया. लेकिन जैन और बौद्ध धर्म के ग्रंथों में उनके सूत्रों का काफी उल्लेख है. 

इन्हीं के जरिए चार्वाक पर काफी जानकारियां भी सामने आईं. मराठी लेखक विद्याधर पुंडलीक ने चार्वाक पर काफी अध्ययन करने के बाद उन पर प्रमाणिक नाटक लिखा, जिससे चार्वाक के बारे न केवल जानकारियां मिलती है. बल्कि ये भी पता चलता है कि वैलेंटाइन जैसा पर्व तो हम सदियों पहले मनाते थे.

प्यार का उत्सव यानि चंद्रोत्सव
विद्याधर पुंडलिक की किताब चार्वाक कहती है कि चार्वाकवादी साल की एक खास ऋतु में चंद्रोत्सव पर्व आयोजित करते थे. इसकी तैयारियां की जाती थीं. इसे प्रणय उत्सव यानि प्यार के उत्सव और आमोद - प्रमोद के उत्सव के रूप में मनाया जाता था. रातभर युवक और युवतियां साथ में नृत्य करते थे. एक दूसरे को रिझाते थे. चार्वाक मानते थे कि जिंदगी के हर पल का पूरा आनंद लेना चाहिए. इसलिए उन्हें आर्ट ऑफ जॉयफुल लिविंग का जनक भी कहा जाता था.

कई दिनों तक चलता था उत्सव
चंद्रोत्सव कई दिनों तक चलता था. ये मैत्री और आनंद का पर्व भी माना जाता था. इसे चार्वाक अपने शिष्यों के साथ हर साल मनाते थे. हर साल के साथ इसमें युवती और युवतियों की संख्या बढ़ने लगी थी. इस पर राज्य के दरबारी, बड़े पदाधिकारी और धर्माधिकारी काफी नाराज होते थे. न केवल चार्वाक की शिकायतें अंवती के सम्राट वीरसेन से की जाती थीं बल्कि चंद्रोत्सव के दौरान चार्वाकवादियों यानि लोकायतों पर हमले भी होने शुरू हो गए. चंद्रोत्सव को उनके विरोधी छिपकर देखते थे. इस उत्सव को छिपकर देखने के बाद कई बौद्ध भिक्षुओं ने संघ त्यागकर तुरंत चार्वाक की शरण ले ली.

खाओ, पियो और भरपूर जियो
चार्वाक जिस तरह जीवन में सुख के उपभोग की बातें तर्कों के साथ करते थे, उससे एक बड़ा युवा वर्ग उनसे जुड़ता जा रहा था, जो धर्मों के लिए खतरे की घंटी थी. चार्वाक शायद दुनिया के पहले ऋषि थे, जिन्होंने खुले तौर पर वेदों, वैदिक ऋषियों और वैदिक कर्मकांड को चुनौती दी. वे नास्तिक थे. उनका पूरा दर्शन इस पर टिका है कि खाओ, पियो और ऐश करो. भले इसके लिए आपको कर्ज भी क्यों न लेना पड़े. वह कहते थे एक बार मृत्यु हो जाने पर यह देह फिर जन्म लेने नहीं आने वाली. इसलिए कुंठाओं और चिंताओं से मुक्त जीवन जियो.

कब हुए चार्वाक
चार्वाक के सूत्रों को वृहस्पति के सूत्रों के रूप में भी जाना जाता है. चार्वाक वेदों के बाद हुए लेकिन उनके समय में जैन और बौद्ध धर्म मजबूती ले चुका था. स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी उनके काफी श्लोक अपने ग्रंथ सत्यार्थप्रकाश में उद्धृत किए थे. कई विद्वान् कहते हैं कि चार्वाक पहले हुए. वृहस्पति उनको लोकप्रिय बनाने वाले एक और दार्शनिक थे, जो चार्वाक पंथ को मानते थे.
Tags

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !