होटल में जाएँ, तो पानी बाहर से ले जाएँ | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। HOTEL AND RESTAURANT अपनी अर्थात मनमानी कीमत पर देश में पीने का पानी बेच सकेंगे। अब उन्हें इस हेतु सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सहारा मिल गया है। हाल ही में दिए गये एक आदेश में कहा गया है कि होटल और रेस्तरां बोतलबंद पानी और अन्य पैक्ड खाद्य उत्पादों को अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर बेचने को बाध्य नहीं हैं। आदेश में स्पष्ट किया है कि होटल और रेस्तरां में बेचे जाने वाली इन चीजों पर लीगल मीट्रॉलजी ऐक्ट (LEGAL METROLOGY ACT) लागू नहीं होगा। इस ऐक्ट के तहत किसी चीज की निश्चित मात्रा का निश्चित मूल्य होना जरूरी है। जस्टिस आर.एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि होटल और रेस्तरां में मामला सिर्फ बिक्री का नहीं होता। इसमें सेवा भी शामिल होती है। कोई व्यक्ति होटल में सिर्फ पानी की बोतल लेने नहीं जाता।

आदेश में तर्क है कि होटल और रेस्तरां में ग्राहकों को आरामदेह वातावरण दिया जाता है, कटलरी और दूसरी सुविधाएं दी जाती हैं, जिन पर अच्छा-खासा निवेश हुआ रहता है। इसके बदले होटल और रेस्तरां अपने ग्राहक से अतिरिक्त राशि वसूल सकते हैं। कोर्ट में केंद्र सरकार ने दो दलीलें दी थीं। एक तो यह कि होटल में भी किसी चीज की बिक्री पर मीट्रॉलजी ऐक्ट लागू होता है, जिसके तहत एमआरपी से अधिक कीमत वसूलने पर जेल की सजा का प्रावधान है। और दूसरी यह कि एमआरपी से ज्यादा मूल्य पर उत्पाद बेचने से सरकार को कर की हानि होती है। 

बोतलबंद पानी की कीमत को लेकर विवाद 2003 में ही शुरू हो गया था। प्रशासन ने एमआरपी से ज्यादा कीमत वसूलने के लिए कई होटलों को स्टैंडर्ड्स ऑफ वेट्स ऐंड मेजर्स ऐक्ट के तहत नोटिस थमाना शुरू किया था, जिसके खिलाफ होटल संचालकों के संघ ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

हाइकोर्ट ने मार्च 2007 में होटलों के पक्ष में निर्णय दिया। बाद में सरकार ने उस फैसले के खिलाफ डिविजन बेंच में अपील की, जिसने फरवरी 2015 में सरकार से कहा कि वह एमआरपी से ज्यादा पैसे वसूलने वाले होटल-रेस्तरां के खिलाफ मीट्रॉलजी ऐक्ट के तहत कार्रवाई करे। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया, जिसने अब होटलों के पक्ष में निर्णय दिया है। फैसले के बाद उपभोक्ताओं के मन में कई सवाल उठ रहे हैं, जिनका समाधान जल्दी ही करना होगा। 

मसलन, यह कैसे तय होगा कि कोई भी होटल या रेस्तरां एमआरपी से कितनी ज्यादा राशि ले सकता है। ग्राहकों को दी जाने वाली सुविधा को हर कोई अपने तरीके से व्याख्यायित कर सकता है। तब तक होटल में जाएँ, तो पानी बाहर से खरीद कर ले जाएँ की सलाह ज्यादा मुफीद लगती है। ऐसे में इसकी भी एक सुसंगत परिभाषा तय करनी होगी। एमआरपी का मकसद देश में हर उत्पाद का एक अधिकतम मूल्य निर्धारित करना रहा है, ताकि उनकी कीमतों को लेकर मनमानी रुके और सरकार को नियमपूर्वक उन पर राजस्व मिलता रहे। मनमानी की जरा भी गुंजाइश इन दोनों उद्देश्यों के खिलाफ जाएगी। यह खतरा अलग है कि राजस्व घटने के डर से सरकार कहीं होटल-रेस्तराओं पर टैक्स बढ़ा न दे, ऐसा हुआ तो मध्यवर्ग का इनमें जाना संभव नहीं रह जाएगा। बहरहाल, कोर्ट ने एक दिशा दे दी है। इसके अनुरूप व्यवस्था बनाना अब सरकार की जवाबदेही है।तब तक यह सलाह उपयुक्त है होटल में जाएँ तो अपना पानी साथ ले जाएँ।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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