
उत्तर प्रदेश की 198 नगरपालिकाओं में 100 से ज्यादा पर भाजपा ने जीत दर्ज की है, वहीं 438 नगर पंचायतों में से भी ज्यादातर उसी के कब्जे में गई हैं। इसके अलावा, भारी संख्या में भाजपा के पार्षद विजयी हुए हैं। इस चुनाव की खास बात यह रही कि प्रदेश में पिछली बार सत्ता में रही सपा एक भी नगर निगम पर काबिज नहीं हो सकी। कांग्रेस की स्थिति तो और भी खराब है। बसपा की स्थिति सपा और कांग्रेस से बेहतर है।
वैसे भी नगर निकाय के चुनाव हों या क्षेत्र पंचायतों या जिला पंचायतों के, अक्सर यह देखा जाता है कि सत्ताधारी दल का बोलबाला रहता है लेकिन इस बार के चुनाव में विरोधी दलों की सुस्ती भी भाजपा की जीत का एक बड़ा कारक बनी है। इस जीत से उत्साहित होकर योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी की भारी विजय होगी। योगी और मोदी कुछ भी दावा करें, लेकिन यह सत्य है कि राजनीति में डेढ़ साल का समय भी इतना होता है कि कोई भी गारंटी से कुछ नहीं कहा सकता। इसका आधार उत्तर प्रदेश में भाजपा का जनाधार हो सकता है।
ये नतीजे विधानसभा चुनाव में चतुराई से साधी गई सोशल इंजीनियरिंग का कमाल है। अब बात पार्टी के भावी चरित्र की है कि पार्टी कहीं अपनी जीत को राजनीतिक विरोधियों या किसी खास समुदाय के दमन और उत्पीड़न का लाइसेंस न मान ले। राजनीति में यह दोष हर किसी पार्टी में आता है और इस दम्भ में बिहार और दिल्ली जैसे परिणाम आते हैं। भारतीय जनता पार्टी को इसके बाद कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों का सामना भी करना है। इस जीत के बाद उसका व्यवहार वहां की पृष्ठ भूमि तैयार करेगा। यह जीत आगे के चुनावों के लिए व्यवहारिक आदर्श बने, दंभ नही।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।