
पद्मावती बेअसर लेकिन पाकिस्तान का असर दिखा
भाजपा ने पद्मावती से अपने अभियान की शुरूआत की। भाजपा नहीं भाजपा की सरकारें पद्मावती पर आंदोलित थीं लेकिन कोई खास असर दिखाई नहीं दिया। भाजपा के पास कुछ खास नहीं था और कांग्रेस के पास मुद्दों की कमी नहीं थी। असर दिखा तो मणिशंकर अय्यर के यहां हुई डिनर पार्टी का। मोदी ने बड़ी चतुराई के साथ लास्ट टाइम में 'नीच आदमी' को 'नीच जाति का आदमी' बनाकर पेश कर दिया। कांग्रेस इसे काट नहीं पाई। मोदी को सहानुभूति का फायदा मिला लेकिन वो भी इतना नहीं था कि भाजपा को जीत दिला दे। हवा के साथ बदलने वाले वोटर्स उस समय ज्यादा बदले जब पता चला कि मणिशंकर की डिनर पार्टी में पाकिस्तानी भी थे। मोदी ने इसे प्रमुखता से उठाया। कांग्रेस इसका ठीक जवाब नहीं दे पाई। वो जनता को यह समझा ही नहीं पाई कि मणिशंकर अय्यर के यहां डिनर पार्टी की जरूरत क्या थी।
अहमद पटेल ने भी वोट कटवाए
इधर कुछ अतिउत्साहियों ने अहमद पटेल को भावी सीएम घोषित कर दिया। पटेल ने इसका खंडन नहीं किया। भाजपा ने फायदा उठाया और प्रचारित कर दिया कि पाकिस्तान चाहता है अहमद पटेल गुजरात का सीएम बने। एक आतंकी मामले अहमद पटेल का नाम गुजरात के अखबारों में पहले ही छप चुका था। यही वो बड़ा नुक्सान है जिसने कांग्रेस के हाथ आए गुजरात को फिर से भाजपा की गोद में डाल दिया।
आठ सीटों पर दो हजार से कम वोटों से पीछे हुई कांग्रेस
गोधरा समेत ऐसी कम से कम आठ सीटें ऐसी थी जहां कांग्रेस के उम्मीदवार अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों से दो हजार से कम वोटों से पीछे रहे। गोधरा सीट पर भाजपा के सी के राउलजी केवल 258 वोटों से जीत दर्ज कर पाये। गोधरा में नोटा वोटों की संख्या 3,050 थी और एक निर्दलीय उम्मीदवार को 18,000 से अधिक मत मिले। यदि पाकिस्तान कार्ड ना चलता तो यह नोटा के वोट कांग्रेस को मिलते।
एनसीपी, बीएसपी और निर्दलीयों ने कांग्रेस को हराया
धोलका विधानसभा सीट पर कांग्रेस केवल 327 वोटों के अंतर से हारी। इस सीट पर बीएसपी और एनसीपी को 3139 और 1198 वोट मिले। इसी तरह फतेपुरा सीट पर भाजपा ने कांग्रेस पर 2,711 वोटों से जीत हासिल की। एनसीपी उम्मीदवार को 2,747 वोट मिले। बोटाद सीट पर कांग्रेस केवल 906 वोटों के अंतर से हारी। इस सीट पर बीएसपी को 966 वोट मिले। तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने यहां लगभग 7,500 वोट प्राप्त किये।
कांग्रेस के अभियान में सबकुछ था बस इमोशंस नहीं थे
कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान में सबकुछ था। गंभीर मुद्दे उठाए। जनता की नब्ज पकड़ी। पर्याप्त हमले किए। सरकार का अच्छा घेराव भी किया और थोड़ा मनोरंजन भी था लेकिन इमोशन नहीं था। इधर भाजपा की तरफ से जब मोदी ने अभियान शुरू किया तो उसमें इमोशनल बातों का भंडार था। गुजराती बोली ने मोदी को लोगों के ज्यादा नजदीक लाया। राहुल यह नहीं कर पाए। गुजरात में कांग्रेस के पास ऐसा कोई गुजराती नेता भी नहीं था जो गुजरात प्रेमियों को लुभा पाता। मोदी ने अभियान को 'नीच जाति' के साथ जोड़कर संवेदनाओं को जगाया। कांग्रेस कुछ नहीं कर पाई। मोदी ने भावनाओं को आंदोलित किया और उसका भरपूर फायदा उठाया। कांग्रेस के अभियान में ऐसा कुछ नहीं था।