MPPSC 2015 के चयनित अभ्यर्थियों को अब तक पोस्टिंग नहीं मिली | लापरवाही या घोटाला

महोदय मैं रश्मि सिंह कोकोटे आपका ध्यान उस विषय की ओर आकर्षित करना चाहती हूॅ जिन पर प्रायः मीडिया का ध्यान नहीं होता है क्योंकि उनसे प्रभावितों की संख्या अत्यंत कम होती है। महोदय मैं मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा प्रणाली एवं बाद में पोस्टिंग प्रक्रिया की आंतरिक कमियों पर प्रकाश डालना चाहती हूॅ। मेरा इससे प्रत्यक्ष सरोकार न होते हुये भी लोक प्रशासन के अध्येता के रूप में यह मेरा नैतिक दायित्व है कि इन कमियों में समय रहते सुधार हो एवं सरकार इस पर ध्यान देवे।

1. महोदय जैसा कि आप जानते हैं कि मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित होने वाली परीक्षा में दो चरण होते हैं। पहला प्रारंभिक परीक्षा एवं दूसरा मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार। इन दोनों चरणों की परीक्षा की कठिनाई उतनी त्राषदायी नहीं है जितनी की इनकी अनिश्चितता एवं लेट लतीफी। प्रायः किसी वर्ष की परीक्षा को पूर्ण होने में 3 वर्ष लग जाते है अर्थात यदि आप 2015 की राज्य सिविल सेवा परीक्षा देते है तो आपको 2017 में फाइनल रिजल्ट प्राप्त हो पायेगा। जबकि यही संघ लोक सेवा आयोग के मामले में 1.5 वर्ष का समय लगता है।

2. दूसरा विषय साक्षात्कार प्रणाली का है जिसमें निःसंदेह साक्षात्कार बोर्ड का पूर्वाग्रह उनके द्वारा प्रदाय किये गये अंकों में देखने मिलता है। इसका कारण है कि साक्षात्कार के समय बोर्ड के पास किसी छात्र की संपूर्ण एकेडमिक जानकारियॉ होती है जो लोक प्रशासन के मानक सिद्धांतो की दृष्टि से अत्यंत गलत है। इसका कारण यह माना जाता है कि पूर्व में प्राप्त अंकों के आधार पर बोर्ड छात्र का आंकलन करता है न कि वर्तमान व्यक्तित्व के आधार पर। कहने का तात्पर्य यह कि यदि कोई छात्र प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा में अच्छे अंक ला भी ले तो उसका भूतकाल उसका पीछा नहीं छोडने वाला है क्योंकि उसके एकेडमिक रिकार्ड में अच्छा प्रदर्शन नहीं था। 

यदि आयोग एकेडमिक रिकार्ड से प्रभावित होकर ही अंक देना चाहता है तो उसे प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा ही समाप्त कर देना चाहिए एवं केवल स्नातक तक के अंको के आधार पर ही चयन दे दिया जाना चाहिए। प्रायः विगत 5 वर्षो से हुयी परीक्षाओं में इंजिनियरों को अधिक अंक दिया जाना मात्र संयोग है या और कुछ कहा नहीं जा सकता।

संघ लोक सेवा आयोग भारत की अत्यंत प्रतिष्ठित परीक्षा होती है एवं इस परीक्षा में औसत अंक वाले छात्र-छात्राओं ने ही टॉप 10 में स्थान बनाया है। अधिकांश प्रतिशत आईएएस औसत दर्जे के एकेडमिक छात्र रहे है लेकिन उन्होंने इस परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया। रही बात एकेडमिक परीक्षा के अंकों की तो वह अनेक बातों से प्रभावित होता है जैसे अधिक रट्टा मारने की क्षमता, अधिक ट्यूशन एवं शैक्षणिक सुविधाएॅ संबंधित परीक्षा मण्डल एवं विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली आदि। अतः इसको प्रतिभा मापने का अस्त्र मानना अनुचित होगा।

3. तीसरी समस्या है नियुक्ति की जो सबसे अधिक जटिल है। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि आयोग द्वारा भर्ती हेतु अनुशंसित सूची जब विभागों को भेजी जाती है तो कुछ विभाग तो शीघ्रता से नियुक्ति प्रदान कर देते है जबकि कुछ विभाग अपनी लेट लतीफी के लिए जाने जाते है। महोदय इस विषय में पिछले कुछ वर्षो से वाणिज्य कर विभाग का उदाहरण प्रथम स्थान पर है जहॉ 2014 में चयनित अभ्यर्थियों का चयन 2017 में हो पाया, 2015 में चयनित अभ्यर्थी 2017 की समाप्ति तक तक इंतजार ही कर रहे है। 2016 का रिजल्ट आये 4 माह हो चुके है और उनकी नियुक्ति ईश्वर ही जाने। 2017 के साक्षात्कार आज दिनांक को चल रहे है और शीघ्र ही उनकी चयन सूची भी आ जायेगी। 

महोदय विदित हो कि शेष विभागों में 2016 की पोस्टिंग हो चुकी है जबकि वाणिज्य कर विभाग 2015 की नियुक्ति प्रक्रिया अब तक प्रारंभ भी नहीं कर पाया है। महोदय इससे होने वाली लेट लतीफी से वेतन सहित सीनियारिटी एवं अन्य लाभों से अभ्यर्थी वंचित हो जाता है। वर्षो से बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं को ऐसे नौकरशाहों द्वारा तरसाना कदापि उचित नहीं माना जाना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक नौकरशाह अपनी विलंबकारी गतिविधियों से बचने का उचित जवाब पहले से तैयार रखता है।

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