160 KM तक गलत ट्रेक पर दौड़ती रही ट्रेन, यात्रियों ने हंगामा किया तब बदला रूट | NATIONAL NEWS

भोपाल। भारतीय रेल के इतिहास में ऐसा शायद ही हुआ हो कि कोई ट्रेन गलत ट्रेक पर चले और चलती ही चली जाए। 160 किलोमीटर की दूरी के बीच तमाम चैकपाइंट ओर स्टेशन आए लेकिन किसी ने अलर्ट नहीं किया। इस दौरान कोई बड़ा हादसा भी हो सकता था। यात्रियों ने इस गलती को पकड़ा और हंगामा किया तब जाकर गलती का पता चला और ट्रेन को रिवर्स किया गया। मामला स्पेशल ट्रेन का है। दिल्ली से स्वाभिमानी एक्सप्रेस को किसान आंदोलन के लिए स्पेशल चलाया गया था।

दिल्ली से कोल्हापुर जा रही स्पेशल ट्रेन रेलवे अफसरों ने गलती से मथुरा से ग्वालियर ट्रैक पर रवाना कर दिया। जबकि इस ट्रेन को कोटा-रतलाम के रास्ते जाना था। स्पेशल ट्रेन के यात्रियों को जब इसका पता चला तो उन्होंने बानमोर स्टेशन के पास हंगामा कर दिया। मौके पर पहुंची पुलिस ने यात्रियों को समझाइश दी, उसके बाद ट्रेन ग्वालियर के रास्ते कोल्हापुर के लिए रवाना हुई। स्पेशल ट्रेन के गलत ट्रैक पर आने से अन्य ट्रेनें भी प्रभावित हुई। आगरा-ग्वालियर फास्ट पैसेंजर भी एक घंटे की देरी से ग्वालियर स्टेशन पहुंची। यात्रियों ने बताया कि रेलवे की गलती से स्पेशल ट्रेन गलत ट्रैक पर आई और आगरा से लेकर ग्वालियर तक यात्री परेशान रहे वहीं दूसरी गाड़ियां भी लेट हुई। 

दिल्ली से स्वाभिमानी एक्सप्रेस को किसान आंदोलन के लिए स्पेशल चलाया गया था। इसे दिल्ली से महाराष्ट्र के कोल्हापुर जाना था। जानकारी के मुताबिक ट्रेन 160 किलोमीटर तक गलत रूट पर दौड़ती रही और मध्यप्रदेश के मुरैना के बानमोर स्टेशन पहुंच गई। सूत्रों के मुताबिक ड्राइवर और गार्ड को भी गलत रूट का अंदाजा नहीं हुआ। जानकारी मिलने के बाद ट्रेन वापस 160 किलोमीटर लौटी और 22 नवंबर की सुबह महाराष्ट्र के कोल्हापुर पहुंची।

दरअसल, गाड़ियों के ट्रेक को मॉनिटर करने का काम कंट्रोल रूम का होता है। आगरा से बीना तक गाड़ियों के परिसंचालन की ज़िम्मेदारी झांसी कंट्रोल रुम की है। गाड़ियों का रुट की जानकारी कंट्रोल के ज़रिए स्टेशन मास्टर को दी जाती है। स्टेशन मास्टर केबिनमैन को ट्रैक तय करने के लिए निर्देश देता है। जिसके बाद केबिनमैन गाड़ी को ट्रैक तय करके सिग्नल देता है। अगर किसी ट्रैक पर काम चल रहा हो तो दूसरे ट्रैक से ट्रेन निकालने का काम केबिनमैन करता है। जाहिर है ट्रेन 160 किमी तक गलत ट्रैक पर दौड़ती रही और रेलवे सोता रहा। इसकी जवाबदारी कई लोगों पर थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।

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