
वो मुस्लिम हैं, उन्हें एक अलग नाम देने की क्या जरूरत
मंगलवार को म्यांमार की नेता आंग सान सू की ने कहा था कि वह वेरिफिकेशन के बाद रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस लेने को तैयार हैं। हालांकि उनके इस बयान को शक की नजर से देखा जा रहा है। क्योंकि उन्होंने यह भी कहा था, 'मैं रोहिंग्या मसले पर किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव से नहीं डरती। अपनी स्थिति के लिए रोहिंग्या खुद जिम्मेदार हैं।' दूसरी ओर सू की द्वारा अपने भाषण में रोहिंग्या शब्द का इस्तेमाल न किए जाने पर भी सोशल मीडिया में सवाल उठ रहे हैं। इसके जवाब में सू की ने बुधवार को कहा, 'मैं मुसीबत के ऐसे दौर में किसी भावनात्मक शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहती थी। इसलिए उन्हें मुस्लिम ही कहना ठीक है। वे मुस्लिम ही हैं जो रखाइन राज्य में रहते हैं। तो उन्हें एक अलग नाम देने की क्या जरूरत है।
दूसरी ओर म्यांमार से बांग्लादेश के सीमाई इलाकों में गए 4,20,000 रोहिंग्या शरणार्थियों को भारी बारिश का सामना करना पड़ रहा है। उनकी मदद करने के लिए बांग्लादेश सरकार ने ज्यादा सैनिकों को उन इलाके में तैनात किया है। बांग्लादेश सरकार ने कहा, 'सैनिक शरणार्थियों के लिए टेंट लगाने और टॉयलेट बनाने में मदद करेंगे। क्योंकि हजारों शरणार्थी भारी बारिश में भी खुले में रह रहे हैं।'
तस्लीमा ने कहा: भारत को भी शरण देनी चाहिए
इस्लामी कट्टरपंथियों की धमकियों के बाद 20 साल से देश बाहर रह रही हैं लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा है कि सभी रोहिंग्या मुस्लिम आतंकी नहीं हैं। अगर बांग्लादेश उन्हें रख सकता है तो भारत को भी उन्हें शरण देनी चाहिए। एक इंटरव्यू में तस्लीमा ने एआईएमआईएम के नेता व हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी को कट्टरपंथी बताया। मालूम हो कि ओवैसी ने कहा था कि अगर तस्लीमा भारत में रह सकती हैं तो रोहिंग्या मुस्लिम भी रह सकते हैं।